
डॉ. बृजेश सती
PK factor in Bihar elections : बिहार विधानसभा चुनाव की घोषणा होते ही राज्य की सियासत में हलचल तेज हो गई है। इस बार का मुकाबला सिर्फ एनडीए (NDA) और इंडिया गठबंधन (INDIA Alliance) के बीच सीमित नहीं रहने वाला। मैदान में इस बार तीसरा खिलाड़ी उतर चुका है – चुनावी रणनीतिकार से नेता बने प्रशांत किशोर (Prashant Kishor) की नई राजनीतिक पार्टी जन सुराज दल (Jan Suraaj Party)।
राज्य की राजनीति में अब मुकाबला दिलचस्प हो गया है, क्योंकि कई सीटों पर त्रिकोणीय संघर्ष के आसार हैं। पीके का जन सुराज न सिर्फ एक राजनीतिक प्रयोग है, बल्कि बिहार की पारंपरिक राजनीति के खिलाफ नई दिशा में जनमत का परीक्षण भी है।
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पिछली बार एनडीए और महागठबंधन में था कांटे का मुकाबला
वर्ष 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में भाजपा-जदयू गठबंधन को कुल 37.25% वोट मिले थे, जबकि राजद-कांग्रेस गठबंधन को लगभग 37.23% वोट प्राप्त हुए। यानी दोनों गठबंधनों का संयुक्त वोट शेयर 74.5% रहा।
बाकी 25% वोट ‘अन्य दलों’ के हिस्से में गए। यही वह हिस्सा है, जिस पर इस बार प्रशांत किशोर की नजर है (PK factor in Bihar elections)।
बीजेपी ने 110 सीटों पर चुनाव लड़कर 74 सीटें जीतीं (स्ट्राइक रेट 67%)। जेडीयू ने 115 सीटों पर लड़कर 43 सीटें जीतीं (स्ट्राइक रेट 37.5%)। राजद ने 75 सीटें, और कांग्रेस ने 19 सीटें अपने नाम कीं।
रणनीति बनाने वाला खुद मैदान में
प्रशांत किशोर अब तक दूसरों की रणनीति बनाते रहे हैं – चाहे नरेंद्र मोदी के लिए 2014 का अभियान हो या नीतीश कुमार की 2015 की वापसी। लेकिन इस बार वे खुद रणनीतिकार से मैदान के खिलाड़ी बन चुके हैं (PK factor in Bihar elections)।
उनकी नजर उन 25% मतदाताओं पर है, जिन्होंने 2020 में किसी गठबंधन को वोट नहीं दिया था। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि पीके उन मतदाताओं को साधना चाहते हैं जो एंटी-इनकम्बेंसी या मौजूदा राजनीतिक विकल्पों से निराश हैं। अगर वह इस वर्ग को अपने पक्ष में मोड़ने में सफल रहे, तो बिहार की राजनीति में तीसरे मोर्चे का उदय संभव है।
किन सीटों पर असर डाल सकता है ‘जन सुराज’ (PK factor in Bihar elections)
2020 में करीब एक दर्जन सीटों पर जीत-हार का अंतर 1000 वोटों से भी कम था। लगभग 12 सीटों पर यह अंतर 5000 से कम रहा। ऐसे में अगर जन सुराज दल मामूली वोट भी खींच लेता है, तो वह कई सीटों के नतीजे पलट सकता है।
राजनीतिक पर्यवेक्षकों के अनुसार, पीके फैक्टर (PK factor in Bihar elections) इस बार उन इलाकों में निर्णायक भूमिका निभा सकता है जहां जातीय समीकरण कमजोर हैं और मतदाता विकास आधारित राजनीति की तलाश में हैं।
बीजेपी का स्ट्राइक रेट रहा सबसे मजबूत
वोट शेयर के लिहाज से 2020 में राजद (23.45%) को सबसे अधिक वोट मिले। इसके बाद जेडीयू (20.46%), भाजपा (15.65%), और कांग्रेस (6.09%) रही।
एनडीए को कुल 37.26% और महागठबंधन को 37.23% वोट प्राप्त हुए — यानी सिर्फ 0.03% का फर्क!
लेकिन सीटों के लिहाज से भाजपा का प्रदर्शन सबसे बेहतर रहा। भाजपा ने 67% की स्ट्राइक रेट से 74 सीटें जीतीं, जबकि राजद की स्ट्राइक रेट 52% के आसपास रही।
कांग्रेस खोई जमीन की तलाश में
बिहार की राजनीति में कांग्रेस की स्थिति अब कमजोर सहयोगी जैसी है। पिछले विधानसभा चुनाव में उसने 70 सीटों पर चुनाव लड़ा और सिर्फ 19 सीटें जीतीं, स्ट्राइक रेट रहा 27%।
1985 में कांग्रेस 196 सीटें जीतकर राज्य की सबसे बड़ी ताकत थी, लेकिन अब वह राजद के छोटे भाई की भूमिका निभाने पर मजबूर है।
बिहार में कांग्रेस की असफलता ने भी पीके को तीसरे विकल्प की जरूरत का एहसास कराया है।
पीके का स्लोगन – या तो अर्श पर या फर्श पर
प्रशांत किशोर ने अपनी राजनीति के लिए जो स्लोगन चुना है – या तो अर्श पर या फर्श पर, वह उनके आत्मविश्वास और प्रयोगधर्मिता दोनों को दर्शाता है।
वह जानते हैं कि नीतीश कुमार की उम्र और संगठनात्मक कमजोरी जेडीयू के वोट बैंक को अस्थिर कर रही है। ऐसे में पीके का लक्ष्य उस खाली राजनीतिक स्पेस को भरना है, जो धीरे-धीरे बन रहा है (PK factor in Bihar elections)।
उनकी दीर्घकालिक रणनीति है, जन सुराज दल को अगले विधानसभा चुनाव तक एक सशक्त तीसरा विकल्प बनाना।
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बिहार की राजनीति में ‘M Factor’ का नया रूप
बिहार की राजनीति में लंबे समय तक M Factor यानी Men, Money, Muscle का बोलबाला रहा। फिर आया MY Factor – Muslim-Yadav गठजोड़, जिसने दशकों तक समीकरण तय किए।
अब बिहार में एक नया फार्मूला चलन में है – Men, Message, Media, Management। प्रशांत किशोर इस चार ‘M’ के फार्मूले पर काम कर रहे हैं यानी जमीनी जुड़ाव, सटीक संदेश, मीडिया की पकड़ और चुनावी मैनेजमेंट का मिश्रण।
उत्तराखंड और दूसरे राज्यों की निगाहें भी बिहार पर
बिहार में जन सुराज का प्रदर्शन (PK factor in Bihar elections) केवल बिहार की राजनीति को नहीं, बल्कि राष्ट्रीय राजनीति के तीसरे मोर्चे की संभावनाओं को भी प्रभावित करेगा।
खास तौर पर उत्तराखंड जैसे राज्यों में, जहां भाजपा और कांग्रेस के अलावा तीसरी ताकत कभी स्थायी रूप से उभर नहीं पाई, वहां पीके का यह प्रयोग प्रेरणा स्रोत बन सकता है।
उत्तराखंड क्रांति दल जैसे दल अभी संगठन और नेतृत्व के अभाव में पिछड़े हैं। अगर जन सुराज दल बिहार में प्रभावशाली प्रदर्शन करता है, तो यह मॉडल 2027 तक उत्तराखंड और झारखंड जैसे राज्यों में भी अपनाया जा सकता है।
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