

अखाड़ा शब्द सुनते ही ध्यान में कुश्ती आती है। हालांकि जहां भी दांव-पेच लड़ने की गुंजाइश हो, वहां अखाड़ा हो सकता है। अब तो राजनीति में भी अखाड़ेबाजी चलती है। लेकिन यहां हम बात करते हैं धर्म की। सनातन धर्म में भी अखाड़े होते हैं। इनकी असली रौनक कुंभ में देखने को मिलती है।
सनातन में प्रमुख तौर पर 13 अखाड़े हैं। इनमें से 7 अखाड़ों का संबंध शैव संन्यासी सम्प्रदाय से, 3 का संबंध बैरागी वैष्णव सम्प्रदाय और 3 का उदासीन सम्प्रदाय से है। शैव अखाड़े भगवान शिव की भक्ति करते हैं और वैष्णव अखाड़े भगवान विष्णु के भक्त हैं। उदासीन सम्प्रदाय के संत-संन्यासी गुरु नानक देव की वाणी से बहुत प्रेरित हैं।
लेकिन ये अखाड़े आए कहां से?
पहले साधु-संन्यासी जंगलों में, हिमालय पर रहकर तपस्या किया करते थे। तमाम धार्मिक ग्रंथों में जिक्र मिलता है कि साधु जंगलों में अकेले कठिन तपस्या करते थे। हालांकि अकेले रहने में कई परेशानी थी।
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आगे चलकर एक ही जगह पर ज्यादा तपस्वी रहने लगे और इस तरह मठों और आश्रम का अस्तित्व आया। हालांकि साथ रहकर भी ये तपस्वी थे, जो सांसारिकता और गृहस्थी से दूर रहते थे। जब देश में बौद्ध धर्म का प्रभाव बढ़ा तो संघ या विहार स्थापित हुए। यहां सैकड़ों बौद्ध भिक्षु एक साथ रहकर साधना करते थे।
आदि शंकराचार्य ने स्थापित किए मठ
आठवीं शताब्दी में आदि शंकराचार्य ने बौद्ध और जैन दर्शन का खंडन कर ब्रह्मवाद और अद्वैत दर्शन का प्रतिपादन किया। वैदिक धर्म को दोबारा मुख्यधारा में लाने के लिए उन्होंने देश के चार कानों में चार मठ स्थापित किए- द्वारिका में शारदा पीठ, श्रृंगेरी में श्रृंगेरीपीठ, जगन्नाथपुरी में गोवर्धन पीठ और बद्रीनाथ में ज्योतिर्पीठ।
मठों की स्थापना के लिए उन्होंने ‘मठाम्नाय’ ग्रंथ भी लिखा। आदि शंकराचार्य की तरह ही रामानुजाचार्य ने 700 मठों और मध्वाचार्य ने आठ मठ स्थापित किए। बाद के स्वामियों रामानंद, निम्बार्क, वल्लभाचार्य और चैतन्य ने भी मठ बनवाए।
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‘कठोपनिषद’ और ‘स्कन्दपुराण’ में संन्यासियों के चार प्रकार बताए गए हैं – कुटीचक, बहूदक, हंस और परमहंस। माना जाता है कि कुटीचक साधुओं ने ही कुटिया के बाद मठ जैसी धार्मिक संस्था का निर्माण किया होगा।
अद्वैत का दर्शन मानने वाले संन्यासियों के 10 भेद हैं। इनमें से प्रत्येक के बीच अंतर सिर्फ उनके संन्यास वाले नए नाम के अंत में जोड़ी जाने वाली एक-एक उपाधि या उपनाम में ही है। संयुक्त रूप से इन 10 नामों को ‘दशनामी’ कहते हैं।
ये हैं – गिरि, पुरी, भारती, तीर्थ, वन, अरण्य, पर्वत, आश्रम, सागर और सरस्वती। वन और अरण्य उपनाम गोवर्धन पीठ के हैं। इसी तरह तीर्थ और आश्रम शारदापीठ, गिरि, पर्वत और सागर ज्योतिर्पीठ, सरस्वती, भारती और पुरी श्रृंगेरी पीठ के उपनाम हैं।
डेढ़ हजार साल पहले आए अखाड़े
मान्यता है कि आदि शंकराचार्य ने ही अखाड़ों की परंपरा शुरू की। हालांकि सबसे पुराने आवाहन अखाड़े का इतिहास इससे भी ज्यादा पुराना है। देश में दशनामी संन्यासियों के कई अखाड़े हैं। यह संन्यासियों का विशिष्ट संगठन है।
सबसे पहले सन 547 में ‘आवाहन अखाड़े’ की स्थापना हुई थी। सन 647 में ‘अटल अखाड़ा’, 749 में ‘निर्वाणी अखाड़ा’ (Nirvani Akhada), 855 में ‘आनंद अखाड़ा’, 904 में ‘निरंजनी अखाड़ा’ (Niranjani Akhada) और सन 1060 में ‘जूना (भैरव) अखाड़े’ (Juna Akhada) की स्थापना हुई। हर अखाड़े का अपना एक इष्टदेव है।
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माना जाता है कि वैष्णव अखाड़ों की स्थापना साल 1650 से 1713 के बीच शैवों के विरोध में हुई थी। रामानंदी संप्रदाय के बालानंद ने वैष्णव अखाड़ों की मजबूती के लिए काफी प्रयास किए थे। बालानंद ने दिगंबर, निर्वाणी, निर्मोही, खाकी, निरालंबी, संतोषी और महानिर्वाणी अखाड़े स्थापित किए।
संगठन के लिहाज से अखाड़ों को आठ दावे या मंडलों में बांटा गया है। ये मंडल ऋद्धिनाथ दावा, रामदत्ती दावा, चार मढ़ियों का दावा, दस मढ़ियों का दावा, वैकुंठी दावा, सहजावत दावा, दरियाव दावा और भारती दावा हैं।
इन आठ दावों के हवाले 52 मढ़ियों या मठों का प्रबंध रहता है। इन 52 मढ़ियों में गिरि के पास 27, पुरी के पास 16, भारती के पास 4 और एक लामा के पास है। 52 मढ़ियों में से 35 का जिक्र शंकराचार्य के ब्रह्मसूत्र भाष्य में मिलता है। कुछ लोग मानते हैं कि बचे हुए मठों की स्थापना नागा संन्यासियों ने की।
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शैव परंपरा में 11 प्रमुख मठ हैं। प्रयाग का महानिर्वाणी अखाड़ा, ज्योतिर्मठ, वाराणसी (Varanasi) का जंगमबाड़ी, गोविंद मठ, बिहारीपुर मठ, जौनपुर का बाबा कीनाराम मठ, बलिया का श्रीनाथ बाबा मठ, मीरजापुर का स्वामी मठ, हथियाराम मठ, देवरिया का देवाश्रम मठ और गोरखपुर का गोरखनाथ मठ (Gorakhnath Math)। हर मठ का प्रमुख महंत कहा जाता है।
व्यवस्था संभालने के लिए बनी परिषद
अखाड़ों का निर्माण सनातन धर्म की रक्षा के लिए किया गया था, लेकिन इनमें आपस में भी टकराव हो चुका है। सन 1690 में नासिक में हुए कुंभ में शैव और वैष्णव सम्प्रदाय के बीच खूनी संघर्ष हुआ था। सन 1760 में भी हिंसक टकराव के बारे में लिखा गया है। फिर 1954 में प्रयागराज कुंभ में अव्यवस्था के चलते भगदड़ मच गई।
सबसे बड़े धार्मिक आयोजन में लगातार गड़बड़ियों को देखते हुए अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद (Akhil Bharatiya Akhara Parishad) की स्थापना की गई। इसमें सभी मान्यता प्राप्त अखाड़ों के दो-दो प्रतिनिधि होते हैं। ये सभी आपस में मिल-जुलकर कुंभ की व्यवस्था देखते हैं।