

संगम नगरी प्रयागराज कुंभ (Prayagraj Kumbh) के लिए सजी है। महाकुंभ के दौरान करोड़ों लोगों की आगवानी करने वाला यह शहर बिना किसी शक के देश की धार्मिक राजधानी बन जाता है। हालांकि बहुत कम लोग जानते हैं कि प्रयागराज, जो कभी इलाहाबाद हुआ करता था, वास्तव में ब्रिटिश राज के दौरान एक दिन के लिए हिंदुस्तान की राजधानी बना था। यही नहीं, एक समय तो अंग्रेज इसे ही अपनी राजधानी बनाना चाहते थे।
पहले कहानी एक दिन की राजधानी की
इसकी बुनियाद पड़ी थी 1857 की क्रांति के बाद। देश की आजादी के लिए हुए पहले आंदोलन को कुचलने के लिए ईस्ट इंडिया कंपनी ने पूरी बेरहमी दिखाई। गांव के गांव जलाए गए। हजारों लोगों को बिना सुनवाई के फांसी दे दी गई। कितनों को गोली मारकर उनके शव खेतों में फेंक दिए गए। निरीह लोगों पर लाठियां बरसाई गईं और फिर मोटा जुर्माना लगाया गया।
1857 में अगर देश इस उम्मीद से उत्साहित हुआ था कि विदेशी राज से मुक्ति मिलेगी, तो 1858 ने उसे पहले स्वाधीनता संग्राम की नाकामी से उपजी निराशा में डुबो दिया। बेरहम अंग्रेजों ने जनता को रास्तों-गलियों, चौक-चौराहों से लाशें भी नहीं हटाने दी थीं। हर जगह मौत की सड़ांध फैली हुई थी।
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यह आंदोलन तो विफल हो गया, लेकिन इसे कुचलने के लिए अंग्रेजों ने जो तरीका अपनाया, उसे लेकर उनकी काफी थू-थू हुई। अंग्रेज खुद को सभ्य मानते थे। ऐसे में उनके जुल्मों की कहानियां जब यूरोप में पहुंचीं, तो ब्रिटेन को बहुत बदनामी उठानी पड़ी। तब ब्रिटिश राज की कमान महारानी विक्टोरिया के हाथों में थी। ब्रिटेन की कोई भी आलोचना उसकी क्वीन की आलोचना समझी जाती थी।
बात इतनी बढ़ चुकी थी कि कोई फैसला लेना जरूरी हो गया था। ऐसे में महारानी विक्टोरिया ने तय किया कि भारत का शासन अब सीधे ब्रिटिश सरकार के अधीन होगा। इसकी घोषणा हो कहां, इसके लिए काफी माथापच्ची हुई।
ईस्ट इंडिया कंपनी अपना राजकाज कलकत्ता से चलाती थी। बगावत के बाद ईस्ट इंडिया कंपनी ने दिल्ली पर भी अपना पूरा कब्जा जमा लिया था। हालांकि दिल्ली, मेरठ, आगरा- सभी प्रमुख शहरों पर कुछ समय तक क्रांतिकारियों का कब्जा रहा था और उन्होंने प्रशासनिक व्यवस्था को पूरी तरह ध्वस्त कर दिया था।
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इसलिए अंग्रेजों ने इलाहाबाद को चुना
उत्तर प्रदेश को संयुक्त प्रांत आगरा और अवध के नाम से जाना जाता था। उस समय भी इलाहाबाद (आज का प्रयागराज) शासन व्यवस्था के तौर पर महत्वपूर्ण था। क्रांति के दौरान भी अंग्रेजों ने इस पर अपना नियंत्रण बनाए रखा था। अंग्रेजों को लगा कि सत्ता हस्तांतरण के लिए सबसे मुफीद जगह इलाहाबाद हो सकती है। यह जगह उन्हें ज्यादा सुरक्षित लगी। सेना के ठहरने के लिए अकबर का बनाया किला भी था।
इस तरह से, ईस्ट इंडिया कंपनी की ओर से भारत का शासन संभाल रहे लॉर्ड कैनिंग ने सत्ता के हस्तांतरण की घोषणा के लिए इलाहाबाद (Allahabad) शहर को ही चुना। इसी शहर के मिंटो पार्क में उन्होंने सत्ता हस्तांतरण का घोषणा पत्र पढ़ा।
जिस दिन भारत पर ब्रिटिश सरकार का सीधा नियंत्रण हुआ, वह तारीख थी एक नवंबर 1858। इसके साथ ही भारत पर ब्रिटेन का सीधा नियंत्रण हो गया। एक नवंबर 1858 के दिन इलाहाबाद से ही समूचा राजकाज चला। सारी औपचारिकताएं यहीं पूरी हुईं। इस नाते इलाहाबाद भारत की एक दिन की राजधानी भी रहा।
तब परमानेंट राजधानी हो जाता शहर
इलाहाबाद के पास स्थायी राजधानी बनने का मौका भी आया था। यह बात 1858 के पहले की है। पहले इलाहाबाद भी अवध के नवाब के अधीन था। सन 1801 में नवाब ने इस शहर को ईस्ट इंडिया कंपनी को सौंप दिया। इसके बाद अंग्रेजों ने यहां अपने हिसाब से विकास कराने शुरू किए।
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सन 1836 में ईस्ट इंडिया कंपनी के भीतर एक प्रस्ताव लाया गया, जिसमें कहा गया था कि इलाहाबाद को उत्तर-पश्चिम प्रांत की राजधानी बनाया जा सकता है। तब इस प्रांत के तहत आज का उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड आते थे।
अंग्रेजों के इलाहाबाद को चुनने की वजह यह थी कि दिल्ली में मुगलों का शासन था। वैसे कंपनी चाहती थी कि वह दिल्ली में ही राजधानी बनाए, लेकिन तब एक ही जगह सत्ता के दो केंद्र हो जाते। इन्हीं परिस्थितियों में इलाहाबाद का नाम सामने आया। लेकिन फिर आगरा को चुन लिया गया। इसके पीछे रणनीतिक वजह भी थी। आगरा राजधानी दिल्ली के पास है। इस तरह से अंग्रेजों को मुगलों पर निगरानी और नियंत्रण रखने में आसानी होती।
सोचिए, अगर यह प्रस्ताव पास हो गया होता या फिर इलाहाबाद बस एक दिन की राजधानी नहीं होता और वही स्थायी व्यवस्था बन गई होती तो…! तब कुंभ (Kumbh) आज की राजधानी में हो रहा होता। वह भी क्या नजारा होता, राजपथ पर दौड़ते साधु-संत…!