
Shivaji Maharaj
छत्रपति शिवाजी महाराज (Chhatrapati Shivaji Maharaj) की तलवारों का इतिहास जितना गौरवशाली है, उतना ही रोमांचक भी। इतिहास में उनकी तीन प्रमुख रस्मी तलवारों का उल्लेख मिलता है – तुलजा, भवानी (Bhavani) और जगदम्बा (Jagdamba)। हालांकि, ये तलवारें केवल रस्मी महत्व की थीं, लेकिन शिवाजी महाराज (Chhatrapati Shivaji Maharaj) के स्पर्श से ये पवित्र मानी जाती हैं। वास्तविक युद्धों में प्रयोग की जाने वाली तलवारें अलग हुआ करती थीं।
शिवाजी महाराज (Chhatrapati Shivaji Maharaj) की तलवारों के नाम और उनका महत्व
शिवाजी महाराज (Chhatrapati Shivaji Maharaj) की कुल देवी तुलजा भवानी थीं, जिनका मंदिर महाराष्ट्र के धाराशिव जिले के तुलजापुर में स्थित है। इसी कारण उन्होंने अपनी दो तलवारों के नाम तुलजा (Tulja) और भवानी (Bhavani) रखा, जबकि तीसरी तलवार का नाम जगदम्बा (Jagdamba) रखा गया। ये तीनों ही देवी दुर्गा के रूप माने जाते हैं।
यह भी पढ़ें : मुगलों से कैसे आजाद रहा नेपाल?
तुलजा तलवार की कहानी
छत्रपति शिवाजी महाराज (Shivaji Maharaj) की ऐतिहासिक तलवारों में से एक, तुलजा तलवार वर्तमान में महाराष्ट्र के सिंधुदुर्ग किले में सुरक्षित रखी गई है। इस किले में शिवाजी महाराज की स्मृति में शिवराजेश्वर मंदिर स्थापित किया गया है। इसी मंदिर में शिवाजी महाराज की प्रतिमा के सामने एक कांच के बक्से में इस ऐतिहासिक तलवार को रखा गया है।
यह तलवार शिवाजी महाराज को उनके पिता शहाजी राजे (Shahaji Raje) द्वारा 1662 में प्रदान की गई थी। उस समय शहाजी राजे और उनके पुत्र संभाजी (Shambhaji) बीजापुर के आदिलशाही दरबार में सेवा कर रहे थे। आदिलशाह की विशेष अनुमति से शहाजी राजे पुणे आए, जहां उनकी मुलाकात खंडोबा मंदिर, जेजुरी में शिवाजी महाराज से हुई।
यह भी पढ़ें : अपनों ने दगा दिया, वरना बाबर में कहां दम था
शहाजी महाराज ने जब अपने पुत्र शिवाजी द्वारा मराठा राज्य के विस्तार को देखा, तो वे अत्यंत प्रसन्न हुए। उन्होंने प्रेमपूर्वक शिवाजी महाराज को गले लगाया और उन्हें दो बहुमूल्य उपहार प्रदान किए, मोतियों की दुर्लभ कंठमाला और एक तलवार।
शिवाजी महाराज ने इस तलवार को अत्यंत आदर और सम्मान के साथ स्वीकार किया। उन्होंने इसे अपनी कुलदेवी तुलजा भवानी (Tulja Bhavani) के प्रति समर्पण भाव से जोड़ते हुए इसका नाम ‘तुलजा तलवार’ रख दिया।
इस ऐतिहासिक तलवार का संबंध कर्नाटक क्षेत्र से था, इसलिए इसे ‘कर्नाटकी धोप’ भी कहा जाता था। मराठी भाषा में ‘धोप’ शब्द तलवार के लिए प्रयुक्त होता है। इस तलवार का निर्माण और उसकी उत्कृष्टता इसे एक विशिष्ट पहचान प्रदान करती है।
भवानी तलवार से जुड़ी तीन कथाएं
भवानी तलवार से जुड़ी कई कथाएं प्रचलित हैं। कहा जाता है कि भवानी माता ने स्वयं शिवाजी महाराज (Chhatrapati Shivaji Maharaj) को यह तलवार प्रदान की थी। इस कथा का उल्लेख संस्कृत काव्य ‘शिवभारत’ (Shivbharat) में किया गया है।
एक सावंतवाड़ी (Sawantwadi) युद्ध कथा है। सन 1510 में पुर्तगालियों द्वारा सावंतवाड़ी पर किए गए हमले के दौरान मराठा सेनानायक खेम सावंत ने पुर्तगाली सेनापति की यह तलवार छीन ली थी। बाद में उन्होंने इसे शिवाजी महाराज (Chhatrapati Shivaji Maharaj) को 1659 में भेंट किया।
यह भी पढ़ें : औरंगाबाद से संभाजी नगर, क्या है नाम का इतिहास?
एक अन्य कथा के अनुसार, समुद्र में फंसे पुर्तगाली जहाज से खेम सावंतों ने यह तलवार प्राप्त की और 7 मार्च 1659 को शिवाजी महाराज (Chhatrapati Shivaji Maharaj) को अर्पित की। शिवाजी महाराज (Chhatrapati Shivaji Maharaj) ने इस तलवार को भवानी माता का आशीर्वाद मानकर उसे ‘भवानी’ नाम दिया।
भवानी तलवार रायगढ़ किले (Raigad Fort) पर हुए युद्ध के दौरान मुगल सरदार जुल्फिकार खान के हाथ लगी और औरंगजेब (Aurangzeb) के खजाने में जमा हो गई। बाद में, औरंगजेब ने इसे शिवाजी महाराज के वंशज शाहू महाराज (Shahu Maharaj) को भेंट कर दिया। वर्तमान में यह सातारा में छत्रपति उदयन राजे भोसले के जल मंदिर में संरक्षित है।
जगदम्बा तलवार : स्पेन से इंग्लैंड तक
शिवाजी महाराज (Chhatrapati Shivaji Maharaj) अपने सैनिकों को उन्नत तलवारें देना चाहते थे, लेकिन अंग्रेज, फ्रेंच और पुर्तगाली उन्हें हथियार देने को तैयार नहीं थे। केवल स्पेन ने मदद की। इसके बाद स्पेन से तलवारों के ब्लेड आयात किए गए और महाराष्ट्र के मुल्हेर किले में उनकी मूठ तैयार की गई।
इन्हीं तलवारों में से एक स्पेन के राजा ने शिवाजी महाराज (Chhatrapati Shivaji Maharaj) को उपहारस्वरूप दी, जिस पर IHS (Imperial Heritage of Spain) अंकित था। यही तलवार आगे चलकर जगदम्बा तलवार कहलाई।
साल 1875 में इंग्लैंड के युवराज प्रिंस ऑफ वेल्स अल्बर्ट एडवर्ड सप्तम भारत दौरे पर आए थे। ब्रिटिश हुकूमत ने भारतीय रियासतों से उन्हें अमूल्य शस्त्र भेंट करने का दबाव डाला। इसी दबाव में शिवाजी चतुर्थ (Shivaji IV), जो उस समय मात्र 11 वर्ष के थे, ने यह तलवार ब्रिटिश युवराज को भेंट कर दी।
https://en.wikipedia.org/wiki/Shivaji
https://uplive24news.blogspot.com/2025/04/blog-post.html



