

नवंबर में जब सर्दियां शुरू ही हो रही थीं, तब पाकिस्तान और बांग्लादेश के बीच रिश्तों में नई गर्मजोशी दिखाई दी। कराची से चला एक मालवाहक पोत सीधे बांग्लादेश के चटगांव बंदरगाह पर पहुंचा। दो देशों के बीच ऐसा समुद्री व्यापार आम है, लेकिन बात अगर इन दोनों देशों की हो, जो कभी एक धर्म के नाम पर भारत से अलग हुए थे, तो मामला दूसरा हो जाता है।
1971 में पाकिस्तान से अलग होकर बांग्लादेश बना था। करीब 53 बरस हो गए और इस दौरान कभी कोई पाकिस्तानी जहाज सीधे बांग्लादेश नहीं पहुंच सका। दोनों मुल्कों के बीच समुद्री व्यापार सिंगापुर या फिर कोलंबो के जरिये होता था। ऐसे में एक पाकिस्तानी जहाज का बांग्लादेशी जमीन पर पहुंचना अपने आप में सांकेतिक रूप से भी बहुत महत्वपूर्ण है। इस वाकये के बाद ढाका में मौजूद पाकिस्तान के उच्चायोग ने कहा कि इस नए रास्ते से सप्लाई चेन आसान हो जाएगी और दोनों देशों के बीच व्यापार के नए रास्ते खुलेंगे।
अगस्त 2024 में शेख हसीना (Sheikh Hasina) की विदाई के बाद से बांग्लादेश ने उस पाकिस्तान के लिए अपने दरवाजे कुछ ज्यादा ही खोल दिए हैं, जिसके अन्यायों से आजिज आकर उसने संघर्ष के रास्ते आजादी हासिल की थी। भारत में पाकिस्तान के उच्चायुक्त रहे अब्दुल बासित ने हसीना के तख्तापलट के तुरंत बाद ही कहा था कि यह पाकिस्तान (Pakistan in Bangladesh) के लिए सुनहरा मौका है।
यह भी पढ़ें : क्या पाकिस्तान फिर टूटने वाला है?
लेकिन ऐसा लगता है कि इस्लामाबाद से ज्यादा ढाका को जल्दी है इस मौके का फायदा उठाने की। अंतरिम सरकार का नेतृत्व संभालने के एक महीने बाद ही, सितंबर 2024 में न्यूयॉर्क में जब मोहम्मद यूनुस की मुलाकात पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ (Pakistani PM Shehbaz Sharif) से हुई तो उन्होंने कहा कि अपने संबंधों को फिर से जिंदा करना बहुत जरूरी है।
बांग्लादेश का इतिहास (History of Bangladesh) जानने वाले जानते हैं कि संबंधों को जिंदा करने के लिए फिर उस इतिहास को मारना होगा, जिसकी बुनियाद पर बांग्लादेश खड़ा है। हालांकि ऐसा लगता है कि ढाका में जिन लोगों के पास अब सत्ता पहुंची है, वे यह बलिदान देने को तैयार हैं। तभी तो वहां के एक नेता कहते हैं कि, ‘बांग्लादेश हमने खुद बनाया, भारत ने अपने स्वार्थ के लिए पाकिस्तान को बांटा था।’ इस पूरे हालात को देखते हुए लगता है कि बांग्लादेश वही गलती कर रहा है, जो पाकिस्तान ने की।
कट्टरपंथियों को शह दे रहा बांग्लादेश
बांग्लादेश का जन्म कट्टरपंथ के विरोध में ही हुआ था। पश्चिमी पाकिस्तान यानी आज का पाकिस्तान तब के पूर्वी पाकिस्तान यानी बांग्लादेश को उसका हक देने के लिए तैयार नहीं था। पूर्वी हिस्से के पास संसाधन थे, लेकिन अधिकार नहीं। पश्चिमी हिस्सा पूर्वी का दोहन कर रहा था, लेकिन सम्मान नहीं दे रहा था। भाषा, अस्मिता, अधिकारों को लेकर शुरू हुई लड़ाई (Bangladesh Liberation War) आखिरकार अंजाम तक पहुंची। बांग्लादेशियों ने वह जंग पाकिस्तान की कट्टरपंथी सेना और वहां की सरकार के विरुद्ध जीती थी, लेकिन आज उनका देश खुद ही उस दुष्चक्र में फंसता जा रहा है।
यह भी पढ़ें : क्या जादू-टोना करती है इमरान की पिंकी?
मोहम्मद यूनुस (Muhammad Yunus) के आने के बाद से अल्पसंख्यकों, खासकर हिंदुओं पर हमले बढ़े हैं और वह ये कहकर अपना पल्ला झाड़ रहे कि यह बस मीडिया का शोरशराबा है। बांग्लादेश जमात-ए-इस्लामी (Bangladesh Jamaat-e-Islami) पर लगे प्रतिबंध को हटा दिया गया है। इस संगठन की जड़ें जमात-ए-इस्लामी पाकिस्तान (Jamaat-e-Islami Pakistan) से मिलती हैं, जो बांग्लादेश की मुक्ति का कट्टर विरोधी था।
मुक्ति आंदोलन के दौरान हुए खूनखराबे से जमात के हाथ भी रंगे हैं। यही वजह है कि आजादी के तुरंत बाद बांग्लादेशी सरकार ने इस पर बैन लगा दिया। साथ ही, धार्मिक आधार पर बने दूसरे संगठनों को भी प्रतिबंधित कर दिया गया। जिया-उर रहमान के दौर में, 1979 में, बैन हटाया गया।
शेख हसीना ने जब 1975 में हुए नरसंहार के दोषियों को न्याय के कटघरे में लाना शुरू किया, तो उसमें बांग्लादेश नैशनलिस्ट पार्टी (BNP) और जमात के नेता भी थे। अगस्त 2013 में बांग्लादेशी सुप्रीम कोर्ट ने जमात के रजिस्ट्रेशन को रद्द कर दिया था। अगस्त 2024 में शेख हसीना ने इस संगठन पर फिर से बैन लगा दिया। हालांकि मोहम्मद यूनुस ने आते ही इस संगठन पर प्यार लुटा दिया। यही हाल BNP का भी है।
यह भी पढ़ें : जिन्ना से इतना चिढ़ता क्यों है पाकिस्तान?
इसकी प्रमुख और जिया-उर रहमान की पत्नी खालिदा जिया (Khaleda Zia) भी कट्टर मिजाज मानी जाती हैं। उनके प्रधानमंत्री रहते पहले भी ढाका और इसलामाबाद के बीच दोस्ती की कोशिशें हो चुकी हैं। नए निजाम में उन्हें फिर से ताकत मिल गई है। साफ तौर पर दिख रहा है कि अब कट्टरपंथी ताकतें सरकार और प्रशासन से जुड़े फैसले ले रही हैं और बकायदा बयान जारी कर रही हैं। हिंदू संगठनों को निशाना बनाया जा रहा है। यही तो पाकिस्तान में भी होता है।
अपने इतिहास को नकारने की कोशिश
ढाका में भारत विरोधी छात्र आंदोलन के दौरान BNP के एक नेता ने कहा कि हम नई दिल्ली का गुलाम बनने के लिए आजाद नहीं हुए। यह बयान पूरी तरह से इतिहास को नकारना और चीजों को गलत परिप्रेक्ष्य में देखना है। भारत के किसी नेता ने कभी ऐसा बयान नहीं दिया कि नई दिल्ली अपने समक्ष ढाका को कमतर समझती हो। यह रिश्ता आपसी विश्वास का है। बांग्लादेश के लोगों में यह भी संदेह पैदा किया जा रहा कि भारत ने उनके देश नहीं बल्कि शेख हसीना के साथ रिश्ते आगे बढ़ाए थे।
बांग्लादेश यहां भी पाकिस्तान की नकल करने की कोशिश कर रहा। पाकिस्तान मानता है कि उसका वजूद भारत से भी पुराना है। उसे यह सच स्वीकार करने में बहुत दिक्कत है कि उसकी पैदाइश तो हाल में हुई है और हिंदुस्तान के मुकाबले उसका अपना कोई स्वतंत्र इतिहास नहीं है। उसका वही इतिहास है, जो भारत का है। बांग्लादेश में सिर उठा रहे कट्टरपंथी भी अतीत को इसी तरह से धो देना चाहते हैं। पाकिस्तान के साथ पींगे बढ़ाना इसी ख्वाहिश का नतीजा है।
व्यापार में भारत को नजरअंदाज नहीं कर सकता ढाका (Trade in India and Bangladesh)
बांग्लादेश के नए निजाम को पाकिस्तान (Pakistan) की तरह ही अपनी तुलना भारत से करने का चस्का लगा हुआ है। ऐसा करके वह अपने देश को ऐसी कठिन आर्थिक राह पर ले जा रहे हैं, जहां से वापसी मुश्किल हो जाएगी। बांग्लादेश की 94 प्रतिशत सीमा भारत (India-Bangladesh border) के साथ लगती है। 2022-23 में दोनों के बीच करीब 16 अरब डॉलर का व्यापार हुआ था।
एशिया में बांग्लादेश सबसे ज्यादा निर्यात भारत में ही करता है। वह चावल, गेहूं, अनाज, पेट्रोलियम, इलेक्ट्रिक उपकरणों, प्लास्टिक, दवाओं वगैरह के लिए भारत पर निर्भर है। नई दिल्ली ने पिछले कुछ बरसों में बांग्लादेश में सड़क, रेल और बंदरगाह में भी निवेश किया है।
यह भी पढ़ें : क्या पाकिस्तान को डुबोकर मानेंगे इमरान?
शेख हसीना के दौर में बांग्लादेश ने जबरदस्त ढंग से तरक्की की। 2009 से 2024 के बीच में देश की विकास दर 6.3 प्रतिशत रही थी। इस दौरान जीडीपी 123 अरब डॉलर से बढ़कर 455 अरब डॉलर हो गया। बांग्लादेश के टेक्सटाइल सेक्टर ने खासतौर पर उड़ान भरी। 2023 में बांग्लादेश (Bangladesh news) ने 54 बिलियन डॉलर कीमत के कपड़े निर्यात किए थे।
इस मामले में चीन के बाद उसका नंबर दूसरा था। देश की अर्थव्यवस्था में टेक्सटाइल इंडस्ट्री की हिस्सेदारी 10 प्रतिशत थी और 40 लाख से ज्यादा लोग इसमें लगे हुए थे। हालांकि कोविड के बाद इस उद्योग पर संकट आया तो लेकिन शेख हसीना की सरकार उसे दूर करने में लगी हुई थी। राजनीतिक अस्थिरता ने उन प्रयासों को जबरदस्त ढंग से धक्का पहुंचाया है।
बिगड़ते संबंधों की वजह से अगर भारत-बांग्लादेश (India-Bangladesh relation) के व्यापारिक रिश्ते भी बिगड़ते हैं, तो इससे ढाका को ही नुकसान होगा। जो चीजें उसे पड़ोस से सस्ते में मिल जाती हैं, उन्हीं को बाकी दुनिया से खरीदना पड़ेगा और ट्रांसपोर्टेशन की वजह से कीमत ज्यादा हो जाएगी। बांग्लादेश के सामने पाकिस्तान का उदाहरण है। आज की तारीख में भारत और पाकिस्तान (India-Pakistan trade) के व्यापारिक रिश्ते नहीं के बराबर हैं। भारत का स्टैंड साफ है कि आतंकवाद और व्यापार साथ नहीं चल सकते।
वित्तीय वर्ष 2018-19 में भारत ने पाकिस्तान को 2.07 बिलियन डॉलर के सामान का निर्यात किया था और पाकिस्तान से 495 मिलियन डॉलर का आयात किया था। अगले वित्तीय वर्ष में, भारत का पाकिस्तान को निर्यात 60.5 प्रतिशत घटकर 817 मिलियन डॉलर रह गया, जबकि आयात 97.2 प्रतिशत गिरकर केवल 14 मिलियन डॉलर बचा।
सरकारी आंकड़ों के अनुसार, 2024-25 के पहले पांच महीनों में भारत ने पाकिस्तान से शून्य आयात किया। वहीं, इसी दौरान चीनी, दवाओं समेत 235 मिलियन डॉलर का सामान वहां भेजा। भारत की अर्थव्यवस्था को देखते हुए ये आंकड़े शून्य ही समझिए।
बंटवारे के बाद पाकिस्तान ने भारत के साथ टकराव की राह चुनी। वहां की सरकार पर कट्टरपंथियों का कब्जा रहा। नतीजा आज सभी के सामने है। पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था (Pakistan economic crisis) दूसरों के दिए डॉलर पर निर्भर हो चुकी है।
बांग्लादेश ने अपनी मुक्ति के बाद बिल्कुल अलग राह चुनी। यही वजह रही कि अर्थव्यवस्था, शिक्षा, स्वास्थ्य- हर मोर्चे पर उसने पाकिस्तान को पीछे छोड़ दिया। अपनी मेहनत के दम पर उसने एशियाई टाइगर का खिताब हासिल किया था। लेकिन अगर वह अपने दरवाजे ऐसे ही कट्टरपंथियों के लिए खोलता रहा, तो विकास का दरवाजा बहुत जल्द बंद हो जाएगा।