
Balochistan : ‘इसमें गलती तो पाकिस्तान की है। उसकी सरकार और सेना हमारी आवाज दबाना चाहती है। बॉर्डर पर कड़ा पहरा बैठा दिया गया है। ऐसे तो हम भूखे मर जाएंगे।’ एक विदेशी जर्नलिस्ट से बात करते हुए तारिक की सूनी आंखों में उतर आया पानी देखा जा सकता है। इसके बाद भी उनकी आवाज लड़खड़ाती नहीं।
उस रिपोर्टर को तारिक क्वेटा के किसी बाजार में मिल गए थे। बाजार क्या, धूलभरी एक सड़क और उसके किनारे चंद कच्ची दुकानें। विडियो में दिखने वाले तकरीबन सारे ही चेहरे तारिक की तरह गुस्से और गम से भरे हुए। अपने सीमांत प्रांत बलूचिस्तान (Balochistan) में पाकिस्तान बंटवारे के बाद से ही फंसा हुआ है। आज तक उसे इससे बाहर निकलने का रास्ता नहीं मिल पाया और शायद रास्ता है भी नहीं।
तारिक की बातों में वह जवाब मिल जाता है, जिसका सवाल लिए पाकिस्तान दशकों से भटक रहा है। बलूचिस्तान के लिए पाकिस्तान उनका वतन है ही नहीं। तारिक या बात करने वाले किसी बलोच ने एक बार भी नहीं कहा कि हमारी सरकार, हमारा देश। वे पाकिस्तान को उसी तरह संबोधित करते हैं, जैसे कोई आक्रमणकारी उनकी जमीन पर घुस आया हो और उन पर अत्याचार कर रहा हो।
बलूचिस्तान को आजादी चाहिए। उसे पाकिस्तान के साथ नहीं रहना। उसे चिढ़ है इस बात से कि उनके प्यारे वतन को पाकिस्तान ने चीन को बेच दिया है। उसे गुस्सा आता है, जब पाकिस्तानी सेना (Pakistani army) बलोच लोगों पर अत्याचार करती है। हाल के समय में यह समस्या और बढ़ चुकी है।
अफगानिस्तान से लगता पाकिस्तान का यह प्रांत इतना अस्थिर हो चला है कि अब इसका असर पूरे देश पर पड़ने लगा है। पाकिस्तान से आजादी की जंग छेड़ने वाले बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी (BLA) का दावा है कि उसने 2024 में छोटे-बड़े करीब 150 हमलों को अंजाम दिया। नवंबर में क्वेटा में रेलवे स्टेशन पर आत्मघाती हमला हुआ था।
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इसके पहले अक्टूबर में कराची के पास चीनी मजदूरों के काफिले को निशाना बनाया गया। पाकिस्तानी सैनिकों को टारगेट करते हुए कई हमले किए गए हैं। Balochistan Liberation Army ने अपने राज्य में रह रहे गैर बलूचियों यानी सिंधी, पंजाबी और चीनियों के खिलाफ जंग छेड़ रखी है। यह जंग क्यों है और बलूचिस्तान का संकट क्या है, इसे समझने के लिए थोड़ा इतिहास और थोड़ा वर्तमान समझना होगा।
पहले बात बलूचिस्तान के इतिहास की (History of Balochistan)
1947 में जब भारत आजादी की ओर बढ़ रहा था, उस समय रियासतों के भविष्य का सवाल खड़ा हो गया। इन्हीं में से एक रियासत थी कलात, जो वर्तमान में बलूचिस्तान (Balochistan) के अधिकांश हिस्से को कवर करती थी। कलात के खान मीर अहमद खान ने अपनी रियासत की आजादी की घोषणा की और इसे पाकिस्तान में शामिल होने से मना कर दिया।
कलात का कानूनी दर्जा अविभाजित भारत की अन्य रियासतों से अलग था। 1876 की एक संधि के तहत ब्रिटिश हुकूमत ने वादा किया था कि कलात की स्वायत्तता का सम्मान किया जाएगा। इसलिए, इसे भारत के अन्य रजवाड़ों के साथ नहीं, बल्कि नेपाल और भूटान जैसे स्वतंत्र राज्यों की श्रेणी में रखा गया था।
4 अगस्त 1947 को दिल्ली में हुई राउंड टेबल कांफ्रेंस में लॉर्ड माउंटबेटन, मुहम्मद अली जिन्ना और कलात के प्रतिनिधियों के बीच समझौता हुआ। इसमें तय किया गया कि कलात एक स्वतंत्र राज्य रहेगा। जिन्ना ने इस समझौते पर हस्ताक्षर किए और इसे स्वीकार किया।
11 अगस्त 1947 को कलात ने अपनी स्वतंत्रता की घोषणा की, और 15 अगस्त 1947 से इसे लागू माना गया। कलात ने एक संविधान भी बनाया और दो सदन, दारुल अवाम (हाउस ऑफ कॉमन्स) और दारुल उमरा (हाउस ऑफ लॉर्ड्स), स्थापित किए। लेकिन जल्द ही पाकिस्तान का रुख बदल गया। 27 मार्च 1948 को पाकिस्तानी सेना ने कलात पर हमला कर दिया।
खान मीर अहमद खान को आत्मसमर्पण करने पर मजबूर किया गया और उन्हें कराची ले जाकर विलय के दस्तावेजों पर जबरन हस्ताक्षर कराए गए। 30 मार्च 1948 को कलात का पाकिस्तान में विलय घोषित कर दिया गया। इस जबरन विलय के बाद बलूच लोगों में गहरा असंतोष फैला। कलात की असेंबली के दोनों सदनों ने इस विलय को अस्वीकार कर दिया। 1948 में खान के भाई अब्दुल करीम ने विद्रोह छेड़ दिया। यह विद्रोह सैन्य रूप से बड़ा नहीं था, लेकिन इसने यह स्पष्ट कर दिया कि बलूच लोगों ने विलय को स्वीकार नहीं किया है।
इसके बाद बलूचिस्तान (Balochistan) में कई विद्रोह हुए। 1958-59 में दूसरा विद्रोह उभरा, जिसमें बलूच विद्रोहियों ने फिर से आजादी की मांग की। 1973-77 के बीच हुआ विद्रोह सबसे बड़ा और संगठित था, जिसमें बलूच राष्ट्रवादियों ने पाकिस्तानी सरकार के खिलाफ हथियार उठाए। इस इलाके में मौजूदा संकट साल 2005 से शुरू हुआ है। अब इसकी कमान Balochistan Liberation Army ने संभाल रखी है।
Balochistan Liberation Army क्या है?
यह संगठन 1970 के दशक में उभरा, जब बलूचिस्तान में पाकिस्तानी सरकार के खिलाफ विद्रोह ने जोर पकड़ा। हालांकि औपचारिक रूप से इसकी स्थापना साल 2000 में मानी जाती है। BLA के लड़ाकों ने बलूचिस्तान के पहाड़ी इलाकों में सुरक्षित ठिकाना बना रखा है।
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माना जाता है कि 2021 में जब अमेरिकी फौजों ने अफगानिस्तान से विदाई ली, तो वे अपने पीछे अरबों डॉलर के जो हथियार छोड़ गए थे, उसका एक बड़ा हिस्सा BLA को भी मिला। इस संगठन को बलूचिस्तान की जनता का समर्थन हासिल है। पाकिस्तान के लिए चिंता की बात यह है कि महिलाएं भी इससे जुड़ी हुई हैं। 2022 में 30 साल की एक टीचर ने कराची यूनिवर्सिटी में आत्मघाती हमला कर तीन चीनी नागरिकों की जान ले ली थी।
विरोध का वर्तमान, चीनी कनेक्शन
चीन-पाकिस्तान इकॉनमिक कॉरिडोर (CPEC) का सबसे अहम हिस्सा ग्वादर पोर्ट बलूचिस्तान में ही है। बलोच लोगों का कहना है कि पाकिस्तानी सरकार ने उनकी जमीन को विदेशियों को बेच दिया है। चीन को अपनी मनमानी करने की खुली छूट दे दी गई है।
लोगों के मुताबिक, चीनी कंपनियां अपने देश से मजदूर लेकर आती हैं और काम करके चली जाती हैं। इन परियोजनाओं ने स्थानीय लोगों को कोई फायदा नहीं मिल रहा, उल्टे उनके प्राकृतिक संसाधनों को लूटा जा रहा है। यही वजह है कि Balochistan Liberation Army ने चीनी नागरिकों पर हमले का फरमान जारी किया है। अब पाकिस्तान इसमें बीच में फंस गया है, जहां न वह चीन को नाराज करना चाहता है और न ही बलोच विद्रोहियों को रोक पा रहा है।
क्या समझौते की कोई गुंजाइश है?
नहीं, किसी गुंजाइश को पाकिस्तान ने ही खत्म कर दिया है। बलोच मानते हैं कि पाकिस्तान ने धोखे से उन पर कब्जा किया। उन्हें अपनी आजादी से कम कुछ भी मंजूर नहीं। दूसरी बात, अपने चीनी आकाओं को खुश करने के लिए पाकिस्तानी सेना समय-समय पर बलूचिस्तान में मिलिट्री ऑपरेशन चलाती है।
आतंकवादियों के खिलाफ कार्रवाई के नाम पर बलोच युवाओं को प्रताड़ित किया जाता है। पाकिस्तानी सेना पर फेक एनकाउंटर और मानवाधिकार हनन के तमाम आरोप लगते रहे हैं। पाकिस्तानी सेना ने बलोच के विरुद्ध पहला ऑपरेशन 1948 में चलाया था। फिर 1958-59 में तमाम विद्रोहियों और बलोच नेताओं को गिरफ्तार किया गया। 1973 में जुल्फिकार अली भुट्टो सरकार ने तो तोप और हेलीकॉप्टर तक का इस्तेमाल कर डाला। 2005 के बाद कई छोटे-बड़े अभियान चल चुके हैं।
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पाकिस्तानी सेना का कहना है कि ये अभियान राष्ट्रीय अखंडता बनाए रखने के लिए जरूरी थे। हालांकि बलूच नेताओं और मानवाधिकार संगठनों का दावा है कि इन अभियानों में स्थानीय आबादी पर भारी दमन हुआ और उनके संसाधनों का शोषण किया गया। बलूचिस्तान में गरीबी, राजनीतिक हाशिए पर रहना और प्राकृतिक संसाधनों के असमान वितरण जैसे मुद्दे विद्रोह और अस्थिरता का कारण बने हुए हैं।
बलूचिस्तान (Balochistan) के लोगों से जब समस्याएं पूछी जाती हैं, तो बाकी पाकिस्तान (Pakistan news) की तरह वे सड़क, बिजली, पानी, नौकरी और महंगाई का नाम नहीं लेते। इनसे तो वे सदियों से जूझते आए हैं। उनकी सबसे बड़ी समस्या पाकिस्तान है और इससे निजात पाने के लिए वे कोई भी कुर्बानी देने को तैयार हैं।



