

पंचतंत्र (Panchatantra) भारतीय साहित्य की एक प्रसिद्ध और कालजयी रचना है। यह कथाओं का एक संग्रह है, जो नैतिकता, जीवन कौशल, और व्यवहारिक ज्ञान सिखाने के उद्देश्य से रचा गया है। इसके रचयिता पंडित विष्णु शर्मा माने जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि एक राजा ने अपने मूर्ख पुत्रों को बुद्धिमान और योग्य बनाने के लिए विष्णु शर्मा को नियुक्त किया था।
विष्णु शर्मा ने इन कथाओं को सुनाकर राजकुमारों को व्यवहारिक ज्ञान और नैतिक शिक्षा दी। पंचतंत्र में 5 भाग (तंत्र) हैं, जिनमें प्रत्येक भाग में कई कहानियां हैं। यह कहानियां मुख्य रूप से जानवरों और पक्षियों के पात्रों के माध्यम से सिखाई जाती हैं। ऐसी ही एक कहानी है, जिसमें दुष्ट सांप को उसके किए का फल मिलता है।
एक जंगल में बरगद के पेड़ पर कौवों का जोड़ा था। पेड़ के तने में एक सांप आकर रहने लगा। हर साल कौव्वी अंडे देती और सांप उनके पीछे से आकर अंडे खा जाता। दोनों हैरान थे कि यह कौन करता है। एक दिन वह सांप को ऐसा करते देख लेते हैं। दुखी होते हैं। कौवा कौव्वी को सांत्वना देता है कि हिम्मत से काम लो। जब यह पता चल गया है कि हमारा दुश्मन कौन है तो उससे निपटने का कोई हल भी खोज लेंगे।
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कौए को लगा कि वह और ऊंची टहनी पर घोंसला बनाएंगे तो सांप अंडे नहीं खा सकेगा। ऊपर चील उड़ती है। उसके डर से वह ज्यादा ऊपर आने की हिम्मत नहीं कर सकेगा। कौव्वी ने फिर से अंडे दिए। बहुत दिन अंडे सुरक्षित रहे। उनमें से बच्चे निकल आए। उधर सांप ने सोचा कि शायद कौवों का वह जोड़ा पेड़ से अपना घोंसला हटाकर कहीं और चला गया है। एक दिन जब वह उन कौवों को उसी पेड़ पर मंडराते देखता है तो सारा माजरा समझ जाता है। समझ जाता है कि अब घोंसला उस पेड़ की ऊंची वाली टहनी पर बना लिया गया है।
एक दिन सांप घोंसले तक पहुंच जाता है और अंडों में से निकले तीन नवजात बच्चों को एक एक करके निगल जाता है। कौवा और कौव्वी लौटते हैं तो खाली घोंसला देख हैरान हो जाते हैं। टूटा हुआ घोंसला और उसमें बच्चों के पंख देख वे समझ जाते हैं कि इस बार भी उनके बच्चे वह दुष्ट सांप निगल गया। दोनों बहुत दुखी होते हैं। कौवा तब कौव्वी से कहता है कि हमारे सामने बहुत बड़ी समस्या आन पड़ी है, लेकिन यहां से भाग जाना उसका हल नहीं हो सकता। मुसीबत में दोस्त काम आते हैं। हमें अपनी दोस्त लोमड़ी से बात करनी चाहिए।
दोनों लोमड़ी के पास जाकर पूरी कहानी सुनाते हैं और रो पड़ते हैं। लोमड़ी उनके आंसू पोंछती है और कहती है, तुम्हें वह पेड़ छोड़कर जाने की जरूरत नहीं। वह अपनी योजना के बारे में उनको समझाती है। यह सुनकर उनके चेहरे पर फिर मुस्कुराहट आ जाती है। लोमड़ी का शुक्रिया अदा करके वे बरगद के पेड़ पर लौट आते हैं।
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उस जंगल में एक बहुत सुंदर सरोवर था। उसमें तरह-तरह के फूल खिले थे। सप्ताह में एक दिन वहां की राजकुमारी अपनी सहेलियों के साथ वहां जल-क्रीड़ा करने आती थी। उनके साथ उनके अंगरक्षक और सैनिक होते थे। अगले दिन राजकुमारी सरोवर में नहाने के लिए आई। लोमड़ी की योजना के मुताबिक कौआ तट से राजकुमारी और सहेलियों के कपड़ों पर रखा कीमती हीरों का हार चोंच में भरकर उड़ गया। उसने खुद सबका ध्यान इस तरफ खींचा। उसने ‘कांव-कांव’ का शोर मचाते हुए हार उठाया ताकि सब उसे देख लें।
राजकुमारी और उनकी सहेलियां चीखने लगीं। सैनिकों को ऊपर देखने को कहा। सैनिकों ने देखा कि कौवा हार लेकर उड़ता जा रहा है। वे उसी तरफ दौड़े। कौवा जानबूझकर उन सैनिकों के आगे-आगे धीरे-धीरे उड़ता हुआ उस बरगद के पेड़ तक ले आया, जहां वह दुष्ट सांप रहता था। उस कीमती हार को सांप के खोह के भीतर गिरा दिया।
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सैनिकों ने जब खोह के पास जाकर देखा तो उन्हें वह सांप दिखाई दिया। सैनिक सावधान हो गए। तब एक सैनिक ने भाले से खोह के भीतर कुरेदना शुरू किया। भाले की नोंक से सांप घायल हो गया और फुंकार भरता हुआ बाहर आ गया। ऐसा होते ही सैनिकों ने तुरंत भाले मार-मार कर उसके टुकड़े कर दिए।
ऐसा करके कौवा ने साबित कर दिया कि दुश्मन चाहे कितना भी शक्तिशाली हो, संकट चाहे कितना भी बड़ा हो, समझ-बूझ के साथ काम लिया जाए तो उस पर विजय पाई जा सकती है। विवेक और धैर्य किसी भी संकट से बाहर आने के लिए बहुत जरूरी हैं।