

भारतीय लोककथाएं मनोरंजक के साथ प्रेरणादायक भी हैं। इनसे हमें जीवन को लेकर महत्वपूर्ण सीख मिलती है। हम आपके लिए लोककथाओं के सागर से चुनिंदा रचनाएं लेकर आए हैं। इसी कड़ी में सिंहासन बत्तीसी (Singhasan Battisi) की यह कहानी आपके सामने है। जानिए कि कैसे राजा विक्रमादित्य ने अपनी बल और बुद्धि से दो बेताल सेवक प्राप्त किए और एक ढोगी को उसके किए की सजा दी।
एक बार राजा विक्रमादित्य शिकार खेलते-खेलते एक ऊंचे पहाड़ पर पहुंच गए। वहां उन्होंने देखा कि एक साधु तपस्या कर रहा था। तपस्या में विघ्न न पड़े इसलिए राजा चुपचाप उन्हें प्रणाम कर लौटने लगे। तभी साधु ने उन्हें आवाज दी। विक्रमादित्य रुक गए। साधु ने खुश होकर उन्हें एक फल दिया और कहा, ‘जो भी इसे खाएगा, उसे तेजस्वी और यशस्वी पुत्र की प्राप्ति होगी।’
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विक्रमादित्य लौटने लगे तो उनकी नजर एक महिला पर पड़ी। वह कुएं की तरफ दौड़ी जा रही थी। कुएं के पास पहुंचकर उसमें छलांग लगाने ही वाली थी कि राजा ने उसे पकड़ लिया। पूछा, ‘तुम आत्महत्या क्यों करने जा रही थी?’ महिला कहने लगी, ‘मेरी कई बेटियां हैं, बेटा नहीं है। इस वजह से पति नाराज रहता है। बहुत मारता है। रोज-रोज की इस दुर्दशा से मैं तंग आ चुकी है, इसलिए अपनी जिंदगी खत्म करना चाहती हूं।’ राजा ने यह सुन साधु द्वारा दिया फल उसे दे दिया। कहा, ‘अगर तुम्हारा पति इसे खा लेगा, तो तुम्हें पुत्र की प्राप्ति होगी।’
कई दिन बीत गए। एक दिन एक ब्राह्मण राजा के पास आया। उसने उन्हें वही फल दिया, जो राजा ने उस महिला को दिया था। विक्रमादित्य उस महिला की चरित्रहीनता से बहुत दुखी हुए। उन्होंने वह फल अपनी पत्नी को दे दिया। लेकिन, राजा की पत्नी नगर के कोतवाल से प्यार करती थी। इसलिए उसने वह फल कोतवाल को दे दिया, ताकि उसके घर तेजस्वी और यशस्वी पुत्र जन्म ले। नगर कोतवाल एक वेश्या के प्रेम की गिरफ्त में था। उसने वह फल वेश्या को दे दिया।
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वेश्या ने सोचा कि उसके घर जन्म लेने वाला पुत्र कितना ही यशस्वी क्यों न हो, उसे समाज कभी सम्मान नहीं देगा। बहुत सोच-विचार के बाद उसने तय किया कि इस फल को खाने के असली अधिकारी राजा विक्रमादित्य हैं। उनका पुत्र उन्हीं की तरह तेजस्वी होगा, तो प्रजा की देखभाल करेगा। राज्य में खुशहाली रहेगी।
यह सोचकर वेश्या ने फल राजा विक्रमादित्य को भेंट कर दिया। फल को देख राजा फिर हैरान रह गए। राजा ने पड़ताल कराई तो उन्हें रानी और नगर कोतवाल के बीच अवैध संबंधों का पता चल गया। वह बहुत दुखी हुए। अपना राजपाट छोड़कर वन चले गए। वहां तपस्या करने लगे।
राजा विक्रमादित्य देवताओं को भी प्रिय थे। देवराज इंद्र ने उनकी अनुपस्थिति में उनके राज्य की रक्षा के लिए ताकतवर देव को भेज दिया। कुछ वक्त बाद विक्रमादित्य का मन वापस अपने राज्य लौटने का हुआ। वह जंगल से राज्य की ओर बढ़ने लगे, लेकिन राज्य की सीमा के नजदीक पहुंचते ही देव ने उनका रास्ता रोक लिया। यह साबित करने के लिए कि वही राजा विक्रमादित्य हैं, उन्हें देव से युद्ध करना पड़ा।
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युद्ध में देव पराजित हुआ तो मान गया कि वह राजा विक्रमादित्य ही हैं। तब देव ने राजा को बताया कि उनके पिछले जन्म का एक दुश्मन यहां आ पहुंचा है। उन्हें खत्म करने के लिए तप कर रहा है। अगर वह उसका वध कर देते हैं, तो लंबे समय तक राज कर पाएंगे। इसके बाद देव चला गया। महल में पहुंचकर राजा को पता चला कि उनकी पत्नी ने अपराधबोध में ज़़हर खाकर जान दे दी थी।
कुछ दिन बाद राजा के दरबार में उनका वही पुराना शत्रु (योगी) आ पहुंचा, जिसका जिक्र देव ने किया था। उसने राजा को ऐसा फल दिया, जिसे काटने पर बेशकीमती पत्थर निकला। यह भेंट राजा को सौंपने के बाद उसने राजा से मदद मांगी। विक्रम उसके साथ चल पड़े। कुछ देर चलकर दोनों श्मशान पहुंचे। वहां योगी ने एक पेड़ की ओर इशारा कर कहा, ‘मुझे अपनी सिद्धि के लिए पेड़ पर लटके इस बेताल की जरूरत है। इसे पेड़ से उतारकर मेरे पास ले आओ।’
विक्रम ने बेताल को पेड़ से उतार कंधे पर लादने की कोशिश की। बेताल बार-बार विक्रम की जरा-सी असावधानी का फायदा उठाकर वापस पेड़ पर लटक जाता। ऐसा 24 बार हुआ। हर बार बेताल, विक्रम को कहानी सुनाता। जब विक्रम 25वीं बार बेताल को कंधे पर बैठाकर ले जा रहे थे, तो रास्ते में बेताल ने कहा, ‘जिस योगी के पास तू मुझे ले जा रहा है, वह दुष्ट और धोखेबाज है। आज उसकी सिद्धि का आखिरी दिन है। आज जब तू देवी के सामने शीश झुकाएगा, तो वह तेरी बलि दे देगा। राजा की बलि से ही उसकी सिद्धि पूरी हो सकती है।’
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राजा विक्रम को देव की चेतावनी याद आ गई। विक्रम ने बेताल को धन्यवाद दिया और उसे लेकर योगी के पास आ गए। योगी बहुत खुश हुआ। उसने राजा विक्रम से देवी के चरणों में सिर झुकाने को कहा। विक्रम ने योगी से इसकी विधि बताने को कहा। जैसे ही योगी ने देवी के चरणों में सिर झुकाकर दिखाया, विक्रम ने तलवार से उसकी गर्दन काट दी।
देवी बलि पाकर प्रसन्न हो गईं और उन्होंने विक्रम को दो बेताल सेवक दे दिए। देवी ने विक्रम से कहा, ‘जब भी तुम इन्हें याद करोगे, ये दोनों तुम्हारी सेवा में हाजिर हो जाएंगे।’ देवी का आशीर्वाद पाकर विक्रम महल में लौट आए।