

राजा विक्रमादित्य मंझे हुए शिकारी थे। हाथ में कोई हथियार न हो तो भी हिंसक से हिंसक जानवरों का वध कर सकते थे। एक बार उन्हें पता चला कि एक शेर ने बहुत उत्पात मचा रखा है। वह कई लोगों को खा चुका है। शेर से निपटने के लिए राजा ने शिकार की योजना बनाई। जंगल में घुसते ही उन्हें शेर दिखाई दे गया। उन्होंने घोड़े से उसका पीछा करना शुरू किया।
शेर कुछ दूर एक घनी झाड़ी में घुस गया। राजा घोड़े से उतरे और उसे खोजने लगे। अचानक शेर उन पर झपटा। उन्होंने भी उस पर तलवार से वार किया। हालांकि झाड़ी की वजह से वार निशाने पर नहीं लग सका। बस, शेर घायल होकर दहाड़ा और घने जंगल में फिर गायब हो गया।
राजा शेर का पीछा करते हुए अपने साथियों से काफी दूर निकल गए। आगे जाकर शेर फिर झाड़ियों में छुप गया, लेकिन इस बार उसने मौका पाकर राजा के घोड़े पर हमला कर दिया और उसे बुरी तरह जख्मी कर दिया। घोड़ा डर और दर्द से हिनहिनाया, तो राजा को इसका पता चला। घोड़े के घावों से खून रिस रहा था।
राजा ने शेर के दूसरे हमले से घोड़े को तो बचा लिया, लेकिन उसके बहते खून ने उन्हें चिंता में डाल दिया। वह उसे सुरक्षित जगह ले जाने की कोशिश में जुट गए। वह घने जंगल में भटक चुके थे। तभी उन्हें एक छोटी नदी दिखाई दी। वह घोड़े को लेकर नदी की तरफ बढ़े, लेकिन वहां पहुंचते ही घोड़े ने दम तोड़ दिया। इससे राजा बहुत दुखी हो गए।
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सूरज छिपने वाला था इसलिए उन्होंने वहीं रुकने का फैसला किया। वह एक पेड़ का सहारा लेकर आराम करने लगे। कुछ ही पल में नदी की धारा में कोलाहल सुनाई दिया। उन्होंने देखा तो 2 लोग एक तैरते हुए शव को दोनों तरफ से पकड़कर झगड़ रहे हैं। लड़ते-लड़ते वे शव को किनारे ले आए। उनमें से एक ने मानव मुण्डों की माला पहनी हुई थी।
वह बहुत डरावना तांत्रिक दिख रहा था। दूसरा एक बेताल था, जिसकी पीठ का ऊपरी हिस्सा नदी के ऊपर उड़ता हुआ-सा दिख रहा था। दोनों उस शव पर अपना-अपना हक जता रहे थे। तांत्रिक का कहना था कि यह शव उसने अपनी साधना के लिए पकड़ा है। बेताल उससे अपनी भूख मिटाना चाहता था।
दोनों में से कोई भी उस पर अपना दावा छोड़ने को तैयार नहीं था। राजा विक्रम को सामने पाकर उन्होंने कहा कि आप हमारा न्याय कीजिए। इस पर राजा ने दोनों के सामने शर्त रखी।
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पहली कि उनके फैसले को दोनों मानेंगे। दूसरी, न्याय के लिए उन्हें शुल्क अदा करना होगा। तांत्रिक ने शुल्क के रूप में उन्हें एक चमत्कारी बटुआ दिया। यह मांगने पर कुछ भी दे सकता था। बेताल ने उन्हें मोहिनी काष्ठ का टुकड़ा दिया, जिसका चंदन घिसकर कोई अदृश्य हो सकता था। इसके बाद राजा ने बेताल को भूख मिटाने के लिए अपना मृत घोड़ा दे दिया और तांत्रिक को तंत्र साधना के लिए वह शव। इस न्याय से दोनों बहुत खुश हुए।
अब रात गहरा चुकी थी। राजा को भूख लगी। उन्होंने बटुए से भोजन मांगा। देखते ही देखते वहां तरह-तरह के व्यंजन आ गए। राजा ने पेट भर लिया। फिर उन्होंने मोहिनी काष्ठ के टुकड़े को घिसकर उसका चंदन लगा लिया और अदृश्य हो गए। ऐसा करने से अब कोई भी हिंसक जानवर उन्हें नहीं देख सकता था। अगली सुबह वह अपने राज्य पहुंचे। महल के रास्ते में एक भिखारी मिला, जो भूखा था। राजा ने तांत्रिक वाला बटुआ उसे दे दिया, ताकि जिंदगी भर उसे भोजन मिलता रहे।