

प्रयागराज कुंभ (Prayagraj Kumbh) में 40 करोड़ से अधिक श्रद्धालुओं के आने का अनुमान है। दुनिया में कोई भी मेला इतना विशाल नहीं होता। बढ़ते-बढ़ते कुंभ ने जो विशाल आकार ले लिया है, उसकी तुलना में दूसरे सारे आयोजन बहुत छोटे नजर आते हैं।
लेकिन यहां तक पहुंचने के लिए कुंभ को कई रुकावटें पार करनी पड़ीं। मुगलों के दौर में, अंग्रेजों के राज में कुंभ के असर को घटाने के लिए बहुत प्रयास किए गए। मेले पर टैक्स लगाया गया। यहां तक कि डुबकी मारने के लिए भी पहले पैसे देने पड़ते थे। इन सबके बीच ईस्ट इंडिया कंपनी ने हिंदुओं के धर्म परिवर्तन की भी साजिश रची।
Kama Maclean की किताब Pilgrimage and Power: The Kumbh Mela in Allahabad में जिक्र मिलता है कि 1801 में जब इलाहाबाद पर कंपनी का सीधा नियंत्रण स्थापित हो गया, तो माघ मेले पर भी अंग्रेजों का प्रभाव बढ़ने लगा।
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अंग्रेजों का मकसद भारत पर नियंत्रण तो हासिल करना ही था, साथ में वे ईसाई धर्म का प्रचार भी करना चाहते थे। हिंदुस्तान में कई मिशनरियां इस काम में लगी हुई थीं। उन्हें अंग्रेजी राज की पूरी मदद मिलती थी।
हद तो तब हो गई, जब ये मिशनरियां कुंभ में भी पहुंचने लगीं। Maclean की किताब के मुताबिक, ईसाई मिशनरियों ने भारतीय भाषाओं में प्रचार सामाग्री छपवाई थी। ईसाई प्रचारक मेले में पहुंचकर पर्चे और किताबें बांटते थे। इनमें ईसाई धर्म का गुणगान होता था। हिंदुओं को इससे कोई आपत्ति नहीं होती, लेकिन मिशनरियों ने सनातन धर्म के विरोध में अनर्गल बातें भी शुरू कर दीं।
ईसाई प्रचारक हिंदू रीति-रिवाजों, परंपराओं, देवी-देवताओं और मान्यताओं के खिलाफ बोलते थे। वे लोग अपमानजनक भाषा का इस्तेमाल करने से भी नहीं हिचकते। सनातन में तमाम मान्यताएं पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही हैं और इनका लिखित रिकॉर्ड बहुत बाद से मिलता है। अंग्रेजों ने इसी का फायदा उठाने का प्रयास किया।
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कुंभ की बात करें, तो जितना बड़ा यह आयोजन है, उतना इसके बारे में लिखा नहीं गया। इसका जिक्र मिलता भी है तो माघ मेले के रूप में। मिशनरियों ने इसी आधार पर कहना शुरू कर दिया कि कुंभ के बारे में पुराणों और दूसरे पवित्र ग्रंथों में नहीं लिखा है। यह केवल अंधविश्वास है।
प्रयाग (Prayagraj) ने खुलकर किया विरोध
जब ईसाई मिशनरियां अपनी हद पार करने लगीं, तो हिंदुओं ने विरोध करना शुरू कर दिया। प्रयाग शहर के लोगों ने भी मिशनरियों की उपस्थिति पर आपत्ति जताई। हिंदुओं ने कहा कि उन्हें चर्च के नजदीक जाने और वहां अपने धर्म का प्रचार करने की अनुमति नहीं है। दूसरी ओर ईसाई मिशनरियां कुंभ में आ रही हैं और हिंदू रीति-रिवाजों में हस्तक्षेप कर रही हैं। यह सब ब्रिटिश सरकार के इशारे पर हो रहा है।
भारतीय अखबारों ने भी इसके खिलाफ आवाज उठानी शुरू कर दी। विरोध बढ़ता जा रहा था और अंग्रेजों को भी इसका अंदाजा था, लेकिन वे मिशनरियों को रोकना नहीं चाहते थे।
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इसकी दो वजह समझ में आती है। एक तो यह कि चर्च का तब ब्रिटिश शासन में बहुत गहरा दखल था। अंग्रेज अफसर ईसाई मिशनरियों को कुंभ में जाने से रोककर चर्च की नाराजगी नहीं मोल लेना चाहते थे।
दूसरी बात यह थी कि अगर भारतीयों की एक मांग मान ली जाती और मिशनरियों को रोक लिया जाता तो हिंदुस्तानी कोई दूसरी मांग उठा सकते थे। अब भला अंग्रेज यह कैसे सहन करते कि वे जिस कौम पर राज करने आए हैं, उसके विरोध के आगे झुक जाएं।
ब्रिटिश सरकार ने हिंदुओं की शिकायतों पर ध्यान नहीं दिया। लेकिन अपनी सारी कोशिशों के बावजूद ईसाई मिशनरियां कुंभ मेले पर असर नहीं छोड़ पाईं, बल्कि इसने भारतीयों को एकजुट कर दिया। Kama Maclean की किताब के अनुसार, हिंदुओं ने खुद के प्रिंटिंग प्रेस शुरू किए और ब्रिटिश शासन के खिलाफ पर्चे छापने शुरू कर दिए। इस तरह से कुंभ ने हिंदुस्तान को एक कर दिया।