

महाराष्ट्र की राजनीति (Maharashtra Politics) में एक बार फिर उथल-पुथल मची हुई है। यह सवाल अब हर किसी की जुबान पर है कि “क्या महाराष्ट्र में सब ठीक नहीं है?” विधानसभा चुनाव (Maharashtra Assembly Election) के नतीजे आने के बाद से ही यह चर्चा शुरू हुई थी, लेकिन इस हफ्ते हालात और गरमा गए। वजह बनी गृह विभाग की हालिया कार्रवाई, जिसके तहत शिवसेना (Shiv Sena) के शिंदे गुट के 20 से ज्यादा विधायकों की सुरक्षा को वाई+ श्रेणी से घटाकर सिर्फ एक कांस्टेबल तक सीमित कर दिया गया। कुछ नेताओं की सुरक्षा पूरी तरह से हटा दी गई है।
यह गृह विभाग मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस (Devendra Fadnavis) के अधीन आता है, और इसी फैसले ने फडणवीस और उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे (Eknath Shinde) के बीच पहले से चल रहे सियासी शीत युद्ध को एक नया मोड़ दे दिया है। हालांकि, संतुलन बनाए रखने के लिए गृह विभाग ने कुछ भाजपा (BJP) और अजित पवार (Ajit Pawar) गुट की एनसीपी (NCP) के नेताओं की सुरक्षा भी हटाई है, लेकिन जिन शिवसेना नेताओं की सुरक्षा कम या खत्म की गई है, उनकी संख्या कहीं ज्यादा है।
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शिवसेना विधायकों की सुरक्षा में कटौती
जुलाई 2022 में, जब एकनाथ शिंदे ने उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray) के खिलाफ बगावत की थी और मुख्यमंत्री बने थे, तब उनके साथ आए 44 विधायकों और 11 लोकसभा सांसदों को वाई श्रेणी की सुरक्षा (Y Category Security) और एस्कॉर्ट वाहन प्रदान किए गए थे। लेकिन विधानसभा चुनाव के नतीजों के बाद अब सुरक्षा व्यवस्था की समीक्षा की गई और सिर्फ मंत्रियों को सुरक्षा दी गई, जबकि हारे हुए सांसदों की सुरक्षा पूरी तरह से हटा दी गई है।
जिनकी सुरक्षा हटाई गई है, उनमें बीजेपी के राज्य कार्यकारी अध्यक्ष रविंद्र चव्हाण, मुख्यमंत्री के करीबी प्रवीण दरेकर, पूर्व मंत्री सुरेश खाड़े, गढ़चिरौली के विधायक देवरा होली, नांदेड़ के विधायक प्रताप पाटिल चिकलीकर, निर्दलीय विधायक रवि राणा और सामाजिक कार्यकर्ता कृष्णा गजबे शामिल हैं। एनसीपी के दिलीप वलसे पाटिल, शिवसेना के दीपक केसरकर और रामदास कदम की सुरक्षा भी हटा दी गई है।
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तनाव के बीच बैठक-बैठक का खेल
महायुति सरकार (Mahayuti Government) में खींचतान किसी से छिपी नहीं है। हाल ही में एक और दिलचस्प घटना सामने आई जब डिप्टी सीएम एकनाथ शिंदे ने उद्योग विभाग की समीक्षा बैठक बुलाई, जबकि इससे पहले इसी विभाग की समीक्षा बैठक जनवरी में फडणवीस ने ली थी। यह विभाग शिवसेना के उदय सामंत के पास है। उदय सामंत ने एक पत्र लिखकर शिकायत की थी कि अधिकारी उन्हें नीतियों की जानकारी नहीं देते, जिसके बाद शिंदे ने बैठक बुला ली।
ऐसी ही एक और स्थिति हुई, जब नासिक मेट्रोपॉलिटन रीजनल डेवलपमेंट अथॉरिटी की बैठक को शिंदे ने नजरअंदाज कर दिया। यह बैठक 2027 में होने वाले कुंभ मेले (Kumbh Mela) की तैयारियों के लिए फडणवीस ने बुलाई थी। बाद में शिंदे ने खुद एक अलग बैठक बुलाकर अपना रुख साफ कर दिया।
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हाल ही में एकनाथ शिंदे ने मंत्रालय में डिप्टी सीएम मेडिकल एड सेल (Deputy CM Medical Aid Cell) की स्थापना की और अपने करीबी सहयोगी को इसका प्रमुख नियुक्त किया। यह पहली बार हुआ है जब किसी उपमुख्यमंत्री ने ऐसा कदम उठाया है। राज्य में पहले से मुख्यमंत्री राहत कोष सेल (CM Relief Fund Cell) मौजूद है। इसी तरह, महाराष्ट्र आपदा प्रबंधन प्राधिकरण से पहले शिंदे को बाहर रखा गया था। फडणवीस को इसका प्रमुख बनाया गया। दो दिन बाद नियमों में बदलाव कर शिंदे को शामिल किया गया।
एक ही मामले को लेकर सीएम और डिप्टी सीएम की अलग-अलग बैठकों ने अधिकारियों के सामने मुश्किल खड़ी कर दी है। वैसे देखा जाए तो डिप्टी सीएम के पास कोई विशेष अधिकार नहीं होते। उनका दर्जा कैबिनेट मंत्री के बराबर ही होता है।
सरकार में शिंदे की स्थिति
विधानसभा चुनाव में महायुति गठबंधन ने शानदार प्रदर्शन किया था। गठबंधन को 288 सीटों वाली विधानसभा में 234 सीटें मिली हैं। भाजपा ने सबसे ज्यादा 132 सीटें अपने नाम की और अकेले दम पर बहुमत से सिर्फ 13 कदम दूर रही। एकनाथ शिंदे की शिवसेना ने 57 और अजित पवार की एनसीपी ने 41 सीटें जीतीं।
नतीजों के बाद जब तय हुआ कि सीएम पद भाजपा के खाते में जाएगा, तो शिंदे गुट की तरफ से असंतोष प्रकट हुआ था। हालांकि जाहिर तौर पर यही कहा गया कि एकनाथ शिंदे को कोई नाराजगी नहीं है। लेकिन कुछ महीनों में ही बार-बार इस तरह की बात आई कि सब सभी नहीं चल रहा।
समीकरणों के लिहाज से देखा जाए तो अगर शिंदे गुट सरकार से हट जाता है, तब भी कोई दिक्कत नहीं होगी। हालांकि राज्य की राजनीति पर करीबी नजर रखने वालों का मानना है कि सरकार से हटने के बाद एकनाथ शिंदे के लिए अपने विधायकों को एकजुट रखना मुश्किल हो जाएगा।
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