

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से फोन पर बातचीत की और फिर ऐलान किया कि यूक्रेन युद्ध खत्म करने के लिए वार्ता जल्द शुरू होगी। अपने चुनावी कैंपेन के दौरान ट्रंप लगातार कह रहे थे कि वह यूक्रेन युद्ध एक दिन में खत्म करा देंगे। बेशक एक दिन तो बीत चुका है, लेकिन ट्रंप की कोशिशें जारी हैं। हालांकि उन्होंने जो तरीका अपनाया है, उससे दुनिया में खलबली मची हुई है।
अमेरिका की पिछली बाइडन सरकार की नीति थी कि यूक्रेन से जुड़ी किसी भी बातचीत में उसे शामिल किया जाएगा, लेकिन ट्रंप ने इसे नजरअंदाज कर दिया। उन्होंने पहले पुतिन को फोन किया, उनसे युद्ध पर बात की, और यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोडिमीर जेलेंस्की (Volodymyr Zelenskyy) को इसके बाद बताया। यह तब है, जब कुछ महीनों पहले ही जेलेंस्की ने ट्रंप से मुलाकात की थी। अमेरिकी राष्ट्रपति के इस कदम से यूक्रेन में असमंजस और नाराजगी फैल गई।
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जेलेंस्की पहले ही आगाह कर चुके थे कि अगर रूस और अमेरिका बिना यूक्रेन की भागीदारी के बातचीत करते हैं, तो इससे गलत सूचनाएं सामने आ सकती हैं और फैसले प्रभावित हो सकते हैं। उनका कहना था कि शांति की चाह दोनों पक्षों में है, लेकिन उनकी शर्तें बिल्कुल भिन्न हैं। पुतिन चाहते हैं कि जो इलाके रूस ने कब्जा कर लिए हैं, वे वहीं रहें। दूसरी ओर जेलेंस्की की मांग है कि ये क्षेत्र यूक्रेन को लौटाए जाएं।
पुतिन के लिए पीछे हटना राजनीतिक हार होगी, क्योंकि इससे उनकी साख गिर सकती है। वहीं, जेलेंस्की के लिए बिना क्षेत्र वापस लिए युद्ध खत्म करना राजनीतिक आत्मघाती कदम साबित हो सकता है, खासकर जब उनका कार्यकाल समाप्त हो चुका है और युद्ध की वजह से नए चुनाव नहीं हो सके हैं।
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यूरोप में ट्रंप को लेकर चिंता
ट्रंप के इस कदम से यूरोप में भी चिंता बढ़ गई है। जर्मनी, फ्रांस और ब्रिटेन जैसे सहयोगी देशों का मानना है कि अमेरिका अगर रूस से वार्ता करता है, तो उन्हें भी इस प्रक्रिया में शामिल किया जाना चाहिए। उनका तर्क है कि यूक्रेन की स्थिति मजबूत बनाए बिना युद्ध को रोकना खतरनाक होगा।
लेकिन ट्रंप प्रशासन की प्राथमिकताएं अलग दिख रही हैं। ट्रंप प्रशासन ने मान लिया है कि रूस ने यूक्रेन के जिन इलाकों पर कब्जा किया है, उन्हें लौटाने की बात कहना हकीकत से इनकार करना है। दूसरी बड़ी बात, यूक्रेन को नाटो में शामिल नहीं किया जाएगा। हालांकि मौजूदा रार इसी बात पर शुरू हुई थी।
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पुतिन को मजबूत कर रहे ट्रंप?
ट्रंप के कदमों से जाने-अनजाने रूसी राष्ट्रपति पुतिन को फायदा हो सकता है, क्योंकि इससे उन्हें अपने कब्जाए इलाकों को बनाए रखने का अवसर मिल जाएगा। बाइडन सरकार इससे बिल्कुल अलग दिशा में चल रही थी। उसका मानना था कि अगर पुतिन को रोका न गया और कमजोर न किया गया, तो रूस की विस्तारवादी नीति जारी रहेगी।
अमेरिका की नीति में आया बदलाव केवल रूस-यूक्रेन तक सीमित नहीं रहेगा। माना जा रहा है कि इसका असर चीन-ताइवान मामले पर भी पड़ेगा। यूक्रेन की सुरक्षा अमेरिका-यूरोप की जिम्मेदारी है, इसी तरह से ताइवान की सुरक्षा वॉशिंगटन के जिम्मे है। तनाव बढ़ने के डर से चीन ने अभी तक ताइवान पर पूरा जोर नहीं आजमाया है, लेकिन अगर अमेरिका ने यूक्रेन का पूरा साथ नहीं दिया, तो चीन को बढ़ावा मिल जाएगा।
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चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की नीतियां भी विस्तारवादी हैं। हाल के बरसों में बीजिंग ने ताइवान पर शिकंजा कसा है। अगर यूक्रेन मामले में सारी बातें रूस के हक में जाती हैं, तो चीन भी ताइवान को लेकर कोई हिमाकत कर सकता है।
यूरोप को अपने भरोसे रहना होगा
अमेरिका के इसी रवैये को देखते हुए जेलेंस्की को कहना पड़ा है कि यूरोप को अपनी सुरक्षा के लिए अपनी खुद की आर्मी बनानी चाहिए। उन्होंने म्यूनिख सिक्योरिटी कॉन्फ्रेंस में कहा कि अमेरिका और यूरोप के बीच दशकों से चला आ रहा संबंध खत्म होने की ओर बढ़ रहा है। अब यूरोप को एक अलग सेना चाहिए।