

काशी विश्वनाथ कॉरिडोर (Kashi Vishwanath Corridor) के ऊंचे दरवाजे को लांघते ही लोहे की ऊंची बाउंड्री में घिरी ज्ञानवापी नजर आने लगती है। देश-दुनिया से काशी (Kashi) घूमने आए लोग जब पहली बार इस इमारत को देखते हैं, तो उनकी निगाहों उन चिह्नों को भी तलाशती हैं जिनके आधार पर कहा जाता है कि कभी यहां असली विश्वनाथ विराजते थे।
आर्कियोलॉजिकल सबूत के तौर पर दो चीजें साफ दिखती हैं – ज्ञानवापी (Gyanwapi) की वह दीवार, जो देखने पर किसी मंदिर की लगती है और नंदी की मूर्ति, जिनका मुंह मस्जिद की ओर है। दर्शनार्थियों का सहज सवाल होता है, ‘नंदी तो शिवलिंग की ओर मुंह करके बैठते हैं?’
ज्ञानवापी मामले में एक किरदार हमेशा से केंद्र में रहा है, मुगल बादशाह औरंगजेब (Aurangzeb)। दावा है कि उसी के आदेश पर मंदिर को ढहाया गया, लेकिन क्या इसके कोई सबूत हैं? तो जवाब है, हां। औरंगजेब के आधिकारिक रिकॉर्ड के रूप में लिखित सबूत मौजूद है।
उसके शासन का रिकॉर्ड दर्ज करने के लिए साकी मुस्तैद खान नाम के एक दरबारी को काम पर रखा गया था। साकी की नियुक्ति इनायतुल्लाह खान कश्मीरी ने की थी। कश्मीरी को औरंगजेब का बहुत करीबी और विश्वासपात्र माना जाता था। दरबार में उसका ओहदा सचिव का था।
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तब दरबारी काम फारसी में होते थे। मुस्तैद खान ने भी इसी भाषा में मुगल दरबार की सारी कार्यवाही लिखी है। उसने बहुत ही सिलसिलेवार ढंग से, वक्त के जिक्र के साथ लिखा है कि औरंगजेब (Aurangzeb) ने कब क्या आदेश दिया। उसने दरबार से लिखे गए और वहां पहुंचे पत्रों को भी रिकॉर्ड में दर्ज किया है। उसके काम को ‘मआसिर-ए-आलमगीरी’ के नाम से जानते हैं।
इसमें 1668-69 से 1707 में औरंगजेब की मौत तक का लेखाजोखा है। औरंगजेब का शासन सन 1658 (Mughal History) से शुरू होता है। उसने अपने पिता शाहजहां को आगरा में कैद करके सत्ता हासिल की थी। उसके पहले 10 वर्षों के बारे में दूसरे दरबारी मिर्जा मोहम्मद काजिम ने लिखा है।
इस्लाम का शासन कायम करना चाहता थ औरंगजेब
सन 1669 से औरंगजेब और ज्ञानवापी की कहानी शुरू होती है। काशी (Varanasi) तब भी सनातन शिक्षा और ज्ञान का केंद्र थी। हालांकि औरंगजेब नहीं चाहता था कि छात्रों को यह सब सिखाया जाए। मुस्तैद ने अपने रिकॉर्ड में लिखा है कि औरंगजेब इन शिक्षाओं को रोकना चाहता था। वह काशी के सबसे बड़े मंदिर यानी श्री काशी विश्वनाथ (Shri Kashi Vishwanath) को गिराकर, पूजा-पाठ पर रोक लगाना चाहता था।
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मुस्तैद के मुताबिक, ‘बादशाह को पता चला है कि तत्ता, मुल्तान और बनारस में ब्राह्मण अपने विद्यालयों में गलत किताबें पढ़ रहे हैं। उनसे शिक्षा लेने के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं। इनमें हिंदू भी होते हैं और मुस्लिम भी। बादशाह इस्लाम का शासन कायम करना चाहते हैं, इसलिए सभी प्रांतों के गवर्नर को उनका आदेश है कि काफिरों के स्कूल और मंदिर ध्वस्त कर दिए जाएं।’
औरंगजेब के आदेश पर अमल करने के लिए मुगल सैनिक निकल पड़े। मुस्तैद ने फिर 2 सितंबर 1669 के बारे में लिखा है। इसी दिन दरबार में खबर आई कि बनारस (Benares) में विश्वनाथ मंदिर गिरा दिया गया है।
मथुरा में भी मंदिर गिराने का आदेश दिया था
‘मआसिर-ए-आलमगीरी’ से यह भी जानकारी मिलती है कि औरंगजेब के दौर में पूरे देश में हिंदुओं के क्या हालात थे और कैसे मंदिरों को निशाना बनाया गया। सन 1670 की शुरुआत में मथुरा (Mathura Janmabhoomi Temple) में मंदिर को गिराया गया। इसके बाद राजस्थान, महाराष्ट्र और दूसरे हिस्सों में मंदिर ध्वंस हुए।
अयोध्या (Ayodhya Ram Mandir) विवाद के दौरान हमेशा यही कहा गया कि राम मंदिर ध्वंस का कोई तत्कालीन लिखित सबूत नहीं है। बाबर की डायरी से 2 अप्रैल 1528 के बाद के पन्ने गायब हैं। इसी दिन वह अयोध्या में दाखिल हुआ था। इसके बाद फिर सितंबर 1528 से पन्ने हैं और तब तक बाबर अयोध्या से निकल चुका था। यानी, उसने अयोध्या में क्या किया, इसका कोई लिखित प्रमाण नहीं है।
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हालांकि ज्ञानवापी के मामले में ऐसा नहीं कह सकते। मुस्तैद खान मुगल दरबार का ही हिस्सा था। उसने औरंगजेब के आदेश पर सारी कार्यवाही को कलमबंद किया। वह बादशाह के सारे फरमान लिखा करता था और जब विभिन्न प्रांतों से उन फरमान पर अमल की रिपोर्ट आती थी, तो उन्हें भी दर्ज करता था।
ज्ञानवापी मामले में अभी तक क्या-कया हुआ? (Gyanwapi Timeline)
- 1991 में वाराणसी कोर्ट (Varanasi Court) में याचिका दाखिल कर पूजा की अनुमति मांगी गई।
- 1993 में मुकदमे में स्टे लगा। दोनों पक्षों को यथास्थिति बनाए रखने का आदेश।
- 2019 में वाराणसी (Varanasi News) की जिला अदालत में याचिका दायर कर ज्ञानवापी का सर्वे कराने की मांग की गई।
- 2021 में पांच महिलाओं ने शृंगार गौरी के दर्शन-पूजन के लिए याचिका दायर की।
- 2022 में कोर्ट ने शृंगार गौरी विग्रह का पता लगाने के लिए एडवोकेट कमिश्नर नियुक्त किया। इसी साल ज्ञानवापी परिसर के सर्वेक्षण (Gyanwapi Survey) का आदेश आया। इस दौरान दावा किया गया कि वजूखाने में शिवलिंग मिला है।
- 2023 मई में हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने ज्ञानवापी में मिले शिवलिंग की कार्बन डेटिंग का आदेश दिया। सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने बाद में रोक लगाई।
- फरवरी 2024 में ज्ञानवापी में स्थित व्यासजी के तहखाने में नियमित रूप से पूजा शुरू हुई।
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