

काशी को सबसे अनूठी नगरी कहा जाता है, जहां कण-कण में भगवान शिव का वास है। यहां के घाट-मोहल्लों में घूमते हुए वाकई ऐसा लगता भी है। इतने मंदिर, इतनी धार्मिक जगह-मठ-आश्रम कि समझ नहीं आता कितना कुछ आंखों में समा लिया जाए।
काशी के बारे में कहते हैं,
विश्वेशं माधवं ढुण्ढिं दण्डपाणिं च भैरवम्।
वन्दे काशीं गुहां गंगा भवानीं मणिकर्णिकाम्॥
यानी, ‘विश्वेश्वर ज्योतिर्लिंग, बिन्दुमाधव, ढुण्ढिराज गणेश, दण्डपाणि कालभैरव, काशी, गुहा गंगा (उत्तरवाहिनी गंगा), माता अन्नपूर्णा तथा मणिकर्णिक आदि को मैं वंदन करता हूं।’ मान्यता है कि इन जगहों के दर्शन से काशी की परिक्रमा पूरी हो जाती है।
- श्री काशी विश्वनाथ मंदिर (Shri Kashi Vishwanath Temple) द्वादश ज्योर्तिंलिंग में से एक है। अब यहां पर मंदिर कॉरिडोर (Vishwanath corridor) बन गया है, जिससे सीधे गंगा घाट तक पहुंच सकते हैं। पास ही ढुण्ढिराज गणेश और मां अन्नपूर्णा का मंदिर है। काशी करवट और दिवोदास का मंदिर जाना न भूले। ये सब जगह श्री काशी विश्वनाथ के पास हैं।
- काशी विशालाक्षी (Kashi Vishalakshi) 51 शक्तिपीठों में से एक है।
- मां त्रिपुर सुंदरी मंदिर : यह ललिता घाट पर है। तंत्र साधना में इस पीठ का बहुत महत्व है। इस मंदिर की खासियत है कि इसकी छत 84 घुड़ियों पर टिकी है, जो 84 लाख योनियों का प्रतिनिधित्व करती हैं।
- आदिविश्वेश्वर महादेव : काशी विश्वनाथ मंदिर के पास है। बहुत से धर्माचार्य मानते हैं कि असली विश्वनाथ ज्योर्तिलिंग यही हैं।
- बिंदुमाधव : पंचगंगा घाट पर है। नारायण का मंदिर है। मान्यता है कि काशी (Kashi) असल में विष्णु की नगरी है। शिव ने उनसे यह जगह मांगी है। पास ही तैलंग स्वामी का मठ है।
- कालभैरव मंदिर (Shree Kaal Bhairav Temple) : काशी के कोतवाल कहे जाते हैं। वाराणसी में कुल 8 भैरव हैं, जो कालभैरव के साथ काशी की सुरक्षा करते हैं। 8 भैरव – रुद्र भैरव, क्रोधन भैरव, कपाल भैरव, बटुक भैरव, आनंद भैरव, आस भैरव, संहार भैरव और दंडपाणि भैरव। कालभैरव मंदिर के पास ही अष्टभैरव का मंदिर है, जिसे चक्रपाणि भैरव कहते हैं। मान्यता है कि यहां दर्शन करने से सभी भैरव के दर्शन का फल मिल जाता है। इस मंदिर के पास ही चौखंबा है, जहां वैष्णवों की षष्ठ पीठ है।
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- पिता महेश्वर मंदिर (Pita Maheshwar Mahadev) : जमीन से करीब 40 फीट नीचे शिवलिंग है। केवल शिवरात्रि पर दर्शन मिलते हैं, बाकी दिनों में गली के ऊपर एक झरोखा है, उससे शिवलिंग देख सकते हैं। शीतला गली में है।

- चंद्र कूप : चंद्रेश्वर महादेव का मंदिर है। परिसर में एक कुआं है। मान्यता है कि अगर किसी की परछाई इस कुएं में नहीं दिखी तो मतलब कि उसकी मौत करीब है। सिद्धेश्वरी गली में यह मंदिर स्थित है।
- मणिकर्णिका घाट (Manikarnika Ghat) : महाश्मशान है। इसी घाट पर रत्नेश्वर महादेव का मंदिर है, जिसका गर्भगृह साल के ज्यादातर समय गंगा जी में डूबा रहता है। यह मंदिर एक तरफ झुका हुआ है। पास में चक्र पुष्करणी कुंड है। धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से इस कुंड का निर्माण किया था। यहीं पर तारकेश्वर महादेव और मणिकेश्वर महादेव के दर्शन भी होते हैं।
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- सारनाथ (Sarnath) : यहां भगवान बुद्ध की उपदेश स्थली के अलावा जैन धर्म के 11वें तीर्थंकर श्रेयांसनाथ की भी जन्मस्थली है। सारनाथ से आधा किलोमीटर पर चौखंडी स्तूप है। ज्ञान प्राप्त करने के बाद भगवान बुद्ध जब काशी आए तो इसी जगह पहली बार अपने उन पांच साथियों से मिले थे, जो बाद में उनके शिष्य बने। जब हुमायूं चौसा की लड़ाई में शेरशाह से हारकर भाग रहा था, तो उसने इसी जगह खंडहरों में रात बिताई थी। बाद में राजा टोडरमल के बेटे ने इस जगह एक बुर्ज बनवा दिया। चौखंडी वाली जगह के बाद भगवान बुद्ध सारनाथ गए, जहां धमेख स्तूप है। इसी जगह के पास खुदाई में अशोक चक्र और लाट मिली थी, जो सारनाथ म्यूजियम में रखी है।
- संकटमोचन मंदिर (Sankat mochan temple) : इसकी स्थापना गोस्वामी तुलसीदास ने की थी। मान्यता है कि यहीं पर उन्होंने रामचरितमानस और हनुमान चालीसा की रचना की थी। पास में ही दुर्गाकुंड और मानस मंदिर भी है। थोड़ा चलिए तो प्रसिद्ध अस्सी घाट भी घूम सकते हैं।
- रामनगर का किला (Ramnagar Fort) : काशी नरेश बलवंत सिंह ने 1750 में इस किले का निर्माण कराया था। इसके पहले उनका निवास राजघाट के पास हुआ करता था। पुराना बनारस भी कभी उधर ही आबाद था। रामनगर में ही विश्व प्रसिद्ध रामलीला होती है। यहां एक म्यूजियम भी है।
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