

किसी बनारसी से पूछिए तो पता चलेगा कि उसकी नजर में शहर के दो हिस्से हैं- पक्का महाल और बाकी बसा बनारस। पक्का महाल मतलब गंगा किनारे की गलियों में बसी वह काशी, जो असली है। जिसे देखने के लिए दुनिया-जहान से लोग यहां खिंचे चले आते हैं।
पक्का महाल की एक सीमा आप मैदागिन है। इस चौराहे पर पहुंचने ही आभास होने लगता है कि अब हम किसी दूसरे लोक में प्रवेश करने जा रहे हैं। इसी चौराहे के पास एक पुरानी इमारत है। ज्यादा सटीक बताऊं तो किसी से पूछकर दारानगर की ओर कदम बढ़ाइए। एक पेट्रोल पंप दिखेगा और उसी के ठीक सामने यह इमारत।
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इसमें घुसने के लिए चंद सीढ़ियां हैं और एक छोटा-सा दरवाजा। यह इमारत एक टीले नुमा चबूतरे पर स्थित है। इस टीले को गोरक्ष टीला कहते हैं। दरवाजे से अंदर जाते ही नजर आता है विशाल परिसर।
मैदागिन चौराहे की भीड़भाड़ और शोर से बिल्कुल अलग इस परिसर में घुसते ही अथाह शांति मिलती है। लगता है कि हम किसी दूसरी दुनिया में पहुंच गए। और ऐसा अनुभव हो भी क्यों न, अब हम गुरु गोरक्षनाथ की शरण में जो हैं। इसी परिसर में हैं गुरु का मंदिर। इसके गर्भगृह में गुरु गोरक्षनाथ का विग्रह और उनकी पादुका है।
इस मंदिर के चारों ओर सात समाधियां हैं। पहली नजर में देखने पर ये छोटे-छोटे देवालय लगते हैं, लेकिन असल में ये नाथ सम्प्रदाय के उन सिद्ध साधकों की समाधियां हैं, जिन्होंने इस मंदिर में लंबे समय तक साधना की। मंदिर के मुख्य द्वार पर ही बाबा बसंतनाथ जी की समाधि है। कहते हैं कि उन्होंने जीवित अवस्था में ही समाधि ले ली थी।
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गुरु गोरक्षनाथ के विग्रह के ठीक सामने मां शीतला का मंदिर है। दूसरी तरफ एक और मंदिर में दक्षिण काली और बटुक भैरव के विग्रह विराजमान हैं। परिसर में ही एक कमरे में धूनी जलती रहती है।
स्कंद पुराण में मिलते हैं वृषेश्वर महादेव (Ancient temples of Varanasi)
मंदिर में वृषेश्वर महादेव भी विराजमान हैं, लेकिन उनके दर्शन के लिए तहखाने में उतरना पड़ता है। कहते हैं कि वृषेश्वर महादेव स्वयंभू हैं। काशी खंड और स्कंद पुराण में इनका वर्णन है।
इसी जगह एक गुफा में मां ललिताम्बा त्रिपुर सुंदरी और मां कात्यायनी के दर्शन भी मिलते हैं, लेकिन यहां तक सभी नहीं पहुंच पाते। वही लोग मां तक जा सकते हैं, जो सच्चे श्रद्धालु हों। इसकी वजह है कि यह जगह सिद्ध साधकों की तपस्थली है। इसकी पवित्रता का पूरा ध्यान रखा जाता है।
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कहते हैं कि लगभग 750 साल पहले सवाई मान सिंह के राजगुरु देवनाथ जी को गुरु गोरक्षनाथ ने स्वप्न में आदेश दिया कि काशी में मेरा एक मंदिर बनवाओ। उन्हें यह स्थान भी ख्वाब में दिखाया गया। मां त्रिपुर सुंदरी और बाबा वृषेश्वर महादेव भी स्वप्न में आए।
राजगुरु ने अगली सुबह यह बात महाराज को बताई। महाराज ने तत्काल काशी में गुरु गोरक्षनाथ का मंदिर बनवाने का आदेश दिया। कहते हैं कि मां त्रिपुर सुंदरी के मंदिर की गुफा का दूसरा छोर जयपुर में निकलता था।
किसी समय काल में ऐसा हुआ कि इस गुफा में प्रवेश करने वाले अचानक गायब होने लगे। तब इसे अंदर से बंद कर दिया गया। आज भी कोई मां के दरबार में अकेले नहीं जा सकता।
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