

ईंट को सीधा रखा जाए या आड़ा, दोनों पक्षों में विवाद इसी बात को लेकर था। दोनों की जमीनें अगल-बगल थीं। अब उनमें से एक अपनी जमीन पर बाउंड्री खिंचवाने पहुंचा था। दूसरे को खबर लगी तो वह भी आ गया यह देखने कि कहीं पहले वाला उसकी जमीन तो नहीं कब्जा रहा। दोनों खड़े हुए, फीते निकाले गए और एक बित्ता जमीन पर आकर पेच फंस गया। दोनों के हिसाब से उनकी एक बित्ता जमीन का नुकसान हो रहा था। आखिर में बुजुर्गों को पंचायत करनी पड़ी और दोनों पक्षों ने आधा-आधा बित्ता जमीन छोड़ दी।
जमीन का झगड़ा ऐसा ही होता है, जहां एक-एक इंच पर बात बिगड़ जाती है। लेकिन यहां तो अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप (Donald Trump) पूरे देश को ही हड़पना चाहते हैं। जब उन्होंने पहली बार कनाडा को अमेरिका का 51वां राज्य कहा, तो सभी को लगा कि वह मजाक कर रहे हैं। हालांकि उनका मजाक अब बढ़ता जा रहा है।
ट्रंप चाहते हैं कि कनाडा उनके देश में मिल जाए, ग्रीनलैंड पर उनका कब्जा हो जाए, पनामा नहर पर अमेरिका अधिकार हो और मैक्सिको की खाड़ी को अमेरिका की खाड़ी कहा जाए। उनकी इच्छाएं बढ़ती जा रही हैं और यह दुनिया के लिए चिंता की बात होनी चाहिए।
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ट्रंप हर चीज को एक व्यापारी की नजर से देखते हैं। उन्हें पनामा नहर इसलिए चाहिए क्योंकि अमेरिकी जहाजों को वहां से गुजरने पर टैक्स देना पड़ता है। कनाडा पर अधिकार इसलिए चाहते हैं ताकि उधर से होने वाला अवैध माइग्रेशन रुक जाए। ग्रीनलैंड (Greenland) में प्राकृतिक संसाधनों का खजाना है और ट्रंप के हिसाब से उसकी कुंजी तो अमेरिका के पास ही होनी चाहिए।
ट्रंप का रवैया पुराने वक्त के तानाशाहों या उन शासकों जैसा है, जो अपने राज्य की सीमाएं बढ़ाना चाहते थे। अंतर यह है कि पहले के दौर में आक्रमण करने वाले अपनी मंशा साफ जाहिर कर देते थे, लेकिन आज उसी को कूटनीतिक और राजनीतिक शब्दों में लपेटकर पेश किया जाता है। ट्रंप इस मायने में दूसरों से अलग हैं कि वह अपनी बात कहने के लिए इन सब छलावों का सहारा नहीं लेते। जो मन में आता है, वह कह देते हैं।
ट्रंप के बयानों में उनका गुरुर झलकता है। उन्हें पता है कि अमेरिका (US news) सुपरपावर है और अमेरिकी राष्ट्रपति दुनिया का सबसे ताकतवर शख्स। ट्रंप इसे जाहिर करने से जरा भी नहीं हिचकिचाते। उन्हें इससे फर्क नहीं पड़ता कि सामने वाला क्या सोचेगा या उसकी भावनाओं को ठेस पहुंचेगी। आज कनाडा की अर्थव्यवस्था अमेरिका पर निर्भर है और ट्रंप इसका पूरा फायदा उठा रहे हैं।
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लेकिन अगर अमेरिकी राष्ट्रपति ने सच में ही कनाडा (Canada) और ग्रीनलैंड को अमेरिका में मिलाने की कोशिशें कीं, तो क्या होगा? यह ऐसा सवाल है जिसे लेकर दोनों देशों में भी चिंता है। दिलचस्प बात यह है कि कनाडा भी नाटो का सदस्य देश है। यह ट्रीटी कहती है कि एक सदस्य पर हमला सभी सदस्यों पर हमले के बराबर माना जाएगा। अमेरिका इस संगठन का सबसे अहम सदस्य है और वही धमकी दे रहा है।
बहुत लोग मानते हैं कि ट्रंप कोई मिलिट्री कदम नहीं उठाएंगे। इसके बजाय वह व्यापारियों वाला रास्ता अपनाएंगे। उनके पास डॉलर की ताकत है। वह पहले ही आयात शुल्क में बढ़ोतरी की बात कह चुके हैं। तो ट्रंप टैरिफ बढ़ाकर और वीजा नियमों में सख्ती करके कनाडा और ग्रीनलैंड पर दबाव बना सकते हैं।
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हो सकता है कि कनाडा को अमेरिका के 51वें राज्य के रूप में संबोधित करना बस दबाव बनाने की एक रणनीति हो। यही चीज ग्रीनलैंड, मैक्सिको और पनामा के बारे में भी हो सकती है। ट्रंप माहौल बना रहे हैं, ताकि दुनिया उनकी शर्तों पर चले।
ट्रंप ‘अमेरिका फर्स्ट’ की नीति पर चलने वाले हैं। 2020 में, जब वह पहली बार राष्ट्रपति बने थे, तब संयुक्त राष्ट्र महासभा को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा था कि बाकी देश अपने हितों को प्राथमिकता देते हैं और इसमें मुझे कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन मैं भी ऐसा ही करूंगा।
अपने दूसरे कार्यकाल में ट्रंप वही करने जा रहे हैं। उन्होंने इसकी शुरुआत भी कर दी है। भले ही वह युद्ध रोकने की बातें करते हों, लेकिन उनका अमेरिका फर्स्ट एजेंडा विश्व को नए तनाव दे सकता है। उन्हें रोकने के लिए तो कोई बुजुर्ग पंचायत भी नहीं कर पाएगा।