

ऑस्ट्रेलिया ने हाल में एक बड़ा कदम उठाया। उसने 16 साल से कम उम्र के बच्चों के लिए सोशल मीडिया बैन कर दिया। इसका मतलब हुआ कि बच्चे फेसबुक, इंस्टाग्राम, टिकटॉक और स्नैपचैट जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल नहीं कर पाएंगे।
ऑस्ट्रेलियाई सरकार ने कंपनियों को इस फैसले पर अमल करने के लिए एक साल का वक्त दिया है। यह जिम्मेदारी कंपनियों पर ही लादी गई है कि उनके प्लेटफॉर्म पर 16 साल से कम उम्र का कोई बच्चा न आए। नियम तोड़ने वालों पर तगड़ा जुर्माना लगाया जाएगा।
इस कदम पर अमल कैसे होता है और इसके क्या असर पड़ते हैं, यह भविष्य की बात है, लेकिन अभी तो ऑस्ट्रेलिया के तमाम माता-पिता बेहद खुश हैं। एक सर्वे के मुताबिक, 77 प्रतिशत नागरिकों ने सरकार की सराहना की है। ऑस्ट्रेलिया को देखकर अब भारत में भी सवाल उठाया जा रहा है कि क्या यहां भी बच्चों को सोशल मीडिया से दूर रखने का समय आ गया है?
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भारत सरकार ने डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन (DPDP) का मसौदा पेश किया है। हालांकि यहां ऑस्ट्रेलिया जैसी सख्ती के बजाय सहमति से काम लिया जाएगा। सहमति कितना असर डाल पाती है, यह भी देखने वाली बात होगी, लेकिन इतना तो है कि अब इस मसले पर गौर करने का समय आ गया है।
पिछले साल के डेटा के मुताबिक, देश में 96 करोड़ से ज्यादा इंटरनेट सब्सक्राइबर्स हैं और 66 प्रतिशत से ज्यादा आबादी सोशल मीडिया पर एक्टिव है। इंस्टाग्राम की पहुंच तो लगभग 80 फीसदी जनसंख्या तक हो चुकी है।
इंटरनेट खपत के मामले में हम तमाम देशों से आगे हैं। हमारे यहां प्रति व्यक्ति औसत डेटा खर्च 20 जीबी से ज्यादा है और यह आंकड़ा भी 2024 का है यानी नई जानकारी आने तक हम 21-22 या इसके भी आगे निकल चुके होंगे। लेकिन चिंता यह नहीं है कि इतनी बड़ी आबादी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर है या फिर वह कितना इंटरनेट खर्च करती है, असल चिंता यह है कि वह आबादी इंटरनेट खर्च किस पर करती है?
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हमारी ज्यादातर इंटरनेट खपत होती है सोशल मीडिया पर और इसमें भी रील्स पर। पूरे देश में लोगों पर वायरल होने का बुखार चढ़ा हुआ है। इस चक्कर में वे कैसी भी रील्स बना सकते हैं। उन्हें न भाषा से परहेज है और न कपड़ों से। उनके लिए केवल लाइक्स और व्यू मायने रखते हैं। यह चिंता तब और बढ़ जाती है, जब हम देखते हैं कि इस आबादी में बड़ा हिस्सा बच्चों का है।
सितंबर 2023 के एक सर्वे के मुताबिक, 66 फीसदी माता-पिता का मानना था कि उनके बच्चों को सोशल मीडिया की लत लग चुकी है। 46 प्रतिशत का कहना था कि उनके बच्चे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर तीन से 6 घंटे बिताते हैं, वहीं 15 प्रतिश से ज्यादा बच्चे 6 घंटे से भी अधिक समय मोबाइल थामे रहते हैं।
हमारा देश अभी युवा है, आगे बढ़ रहा है। ये बच्चे ही हमारी आबादी का बड़ा हिस्सा बनाते हैं और आगे इन्हें ही कमान संभालनी है। इनका समय यूं ही बर्बाद होने नहीं दिया जा सकता।
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सोशल मीडिया काम की चीज है, लेकिन जब इसका इस्तेमाल सोच-समझकर किया जाए। यह जानकारी के नए रास्ते खोलने और दायरा बढ़ाने के लिए बेहतरीन है, पर इसका उपयोग किया जा रहा है सस्ती लोकप्रियता हासिल करने और गलत सूचनाएं फैलाने में।
सोशल मीडिया बच्चों के व्यवहार को बदल रहा है। बच्चे अब मोबाइल की स्क्रीन को ही सोसायटी समझने लगे हैं। इंटरनेट पर पहचान का दायरा बढ़ाकर उन्हें लगता है कि यही असली रिश्ते हैं। ऑनलाइन ट्रेंड होने का जुनून उन्हें असली दुनिया से काट रहा है।
कई स्टडी यह साबित कर चुकी हैं कि सोशल मीडिया के ज्यादा इस्तेमाल से बच्चों का व्यवहार बदल जाता है। वे आक्रामक व्यवहार करने लगते हैं। जब किसी की पोस्ट दूसरों जितनी वायरल नहीं होती तो वह डिप्रेशन में घिर जाता है। मूड स्विंग होना और अनसोशल होना तो बहुत ही कॉमन है।
बच्चों को यह सिखाने की जरूरत है कि सोशल मीडिया असल में उतना भी सोशल नहीं है। हमें उनका परिचय असली समाज से कराना होगा। इसके लिए फर्जी सोसायटी से दूरी जरूरी है।