

दिल्ली विधानसभा चुनाव (Delhi Assembly election) में इस परिणाम की उम्मीद किसी को नहीं थी। शायद खुद भाजपा को भी नहीं। अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) और आम आदमी पार्टी ने पिछले एक दशक में दिल्ली की सियासत में जो भी किया था, वह सब बिल्कुल सटीक साबित हुआ था। इस बार भी लग रहा था कि उनकी बातें असर कर रही हैं। तभी तो जब केजरीवाल और उनकी AAP ने धड़ाधड़ मुफ्त की योजनाओं का ऐलान किया तो बीजेपी और कांग्रेस को भी इस मैदान में उतरना पड़ा।
लेकिन आम आदमी पार्टी सत्ता से बाहर हो चुकी है। पिछले विधानसभा चुनाव के मुकाबले इस बार उसे 40 सीटें कम मिलीं। अरविंद केजरीवाल और मनीष सिसोदिया (Arvind Kejriwal and Manish Sisodia) जैसे नाम खुद चुनाव हार गए। लोग अब भी समझने की कोशिश कर रहे हैं कि दिल्ली में हुआ क्या, कैसे AAP सत्ता से बाहर हो गई। हमने तमाम मीडिया रिपोर्ट्स और एक्सपर्ट्स के हवाले से कुछ पॉइंट बनाए हैं। इनसे बहुत हद तक तस्वीर साफ हो जाती है।
हर चीज मुफ्त नहीं दे सकते
आम आदमी पार्टी (AAP) दिल्ली में मुफ्त बिजली और मुफ्त पानी के वादे के साथ आई थी। उसने ये वादे निभाए भी। फिर महिलाओं के लिए डीटीसी बसों में यात्रा भी फ्री कर दी। इस चुनाव में अरविंद केजरीवाल ने मुफ्त योजनाओं के ऐलान का नया रेकॉर्ड बना दिया। महिलाओं, बुजुर्गों को भत्ता, ग्रंथियों-पुजारियों के लिए ऐलान, फ्री इलाज और दवा, फ्री तीर्थ यात्रा, ये तो बस कुछ झलकियां हैं। उन्होंने सरकारी कर्मचारियों के लिए आवास तक का वादा किया और इसके लिए केंद्र से जमीन मांगी।
यह भी पढ़ें : इस तरह तो बीजेपी और मोदी को नहीं हरा पाएगा I.N.D.I.A.
जनता के मन में सबसे बड़ा सवाल यही उठा कि अगर राजधानी दिल्ली में सब फ्री करने की जरूरत पड़ रही है, तो बाकी देश में क्या हाल होगा? फ्री की इन योजनाओं का बोझ किस पर पड़ेगा? इन चुनावी ऐलान के साथ ही तमाम अर्थशास्त्री कहने लगे थे कि इन योजनाओं को पूरा करना बहुत मुश्किल है, क्योंकि बजट की दिक्कत आएगी।
भ्रष्टाचार मुक्त छवि को धक्का
आम आदमी पार्टी (Aam Aadmi Party) आंदोलन से निकली थी। अरविंद केजरीवाल ने अन्ना हजारे के साथ भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई लड़ी, लेकिन सत्ता में आने के बाद उनके नेता और वह खुद करप्शन में घिर गए। अरविंद केजरीवाल को मनी लॉन्ड्रिंग और करप्शन के आरोप में 177 दिन जेल में रहना पड़ा।
डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया भी पांच सौ से ज्यादा दिन जेल में रहे। पार्टी में अहम भूमिका निभाने वाले और राज्यसभा सांसद संजय सिंह करीब 6 महीने सलाखों के पीछे बंद रहे थे। इसी तरह से पूर्व मंत्री सत्येंद्र जैन को तो करीब ढाई साल जेल में बिताने पड़े।
यह भी पढ़ें : कुंभ से टैक्स वसूल मालामाल हो गए थे अंग्रेज
आंदोलन और उसके बाद, जब तक सत्ता नहीं मिली थी, तब तक अरविंद केजरीवाल और उनके साथी आरोप लगने को ही दोष सिद्ध होना मान लेते थे। उनकी वे तमाम प्रेस कॉन्फ्रेंस आज भी लोगों के जेहन में हैं, जिनमें वे कागजों का पुलिंदा लेकर आते और कहते थे कि ये सबूत हैं। लेकिन सत्ता में आने के बाद उन्होंने पैमाना बदल लिया। जब आरोप खुद पर लगे तो उसे राजनीतिक साजिश कहा। यह दोहरा बर्ताव जनता को पसंद नहीं आया।
अपनी बात से बार-बार पलटना
अरविंद केजरीवाल ने कभी कहा था कि, ‘मैं कोई राजनीतिक पार्टी नहीं बनाऊंगा।’ लेकिन उन्होंने पार्टी बनाई और अपनी इस महत्वाकांक्षा के लिए अपने गुरु अन्ना हजारे से भी दूर चले गए। फिर उन्होंने अपने बच्चों की कसम खाई कि, ‘हम बीजेपी या कांग्रेस में से किसी का समर्थन नहीं करेंगे।’ लेकिन उन्होंने कांग्रेस का समर्थन लिया और पहली बार सीएम बने।
केजरीवाल खुद को हमेशा आम आदमी की तरह पेश करते रहे। गले में मफलर, साधारण पैंट-शर्ट और नीली वैगनआर कार उनकी पहचान थे। समय के साथ यह सब बदल गया। वैगनआर की जगह महंगी गाड़ियों ने ले ली। वह जिस साधारण-से घर में रहने की बात करते थे, उसकी जगह ‘शीशमहल’ आ गया।
यह भी पढ़ें : 99 के फेर में फंस गई कांग्रेस!
सत्ता के लिए साथी बनाए
यह दिलचस्प है कि अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) की राजनीतिक शुरुआत कांग्रेस के खिलाफ आक्रामक सियासी लड़ाई से हुई थी। उन्होंने शीला दीक्षित के दौर में हुए घोटालों को मुद्दा बनाया, लेकिन 28 दिसंबर 2013 को पहली बार दिल्ली के सीएम कांग्रेस के सहयोग से ही बने।
समय के साथ केजरीवाल और आम आदमी पार्टी कांग्रेस के ज्यादा करीब पहुंच गए। 2024 के लोकसभा चुनाव में वह कांग्रेस के साथी थे। यह बात भी चल जाती, क्योंकि राजनीति में दुश्मनी और दोस्ती हालात के हिसाब से होती है, पर उन्होंने विधानसभा चुनाव में कांग्रेस से बिल्कुल ही हाथ खींच लिया। जम्मू-कश्मीर के सीएम उमर अब्दुल्ला ने बिल्कुल सही कमेंट किया, ‘और लड़ो आपस में’।
हमेशा टकराव लेने वाली छवि
सभी को पता है कि दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा हासिल नहीं है और तमाम फैसलों के लिए उपराज्यपाल के साथ समन्वय बनाकर चलना पड़ता है। लेकिन अरविंद केजरीवाल और AAP हमेशा लड़ते नजर आए। हर कदम पर केजरीवाल, उनके मंत्रियों और एलजी के बीच तनाव दिखाई दिया। इस टकराव से नुकसान जनता को उठाना पड़ा।
लोगों ने आम आदमी पार्टी को इसलिए नहीं चुना था कि हर बात में उन्हें यह सुनने को मिली कि केंद्र सरकार काम नहीं करने दे रही। समस्या यह भी रही कि AAP ने उन लोगों से भी टकराव लिया, जो कभी उसके साथ थे। छोटा-सा उदाहरण कांग्रेस का ही लीजिए। इस चुनाव में केजरीवाल ने उसे बीजेपी का सहयोगी बता दिया। यह बात किसी के समझ में नहीं आई कि जिस दल के साथ AAP ने लोकसभा में साझा किया था, वह अचानक से बीजेपी की साझेदार कैसे हो गई? क्या पहले दोस्ती करते समय केजरीवाल को इसका ध्यान नहीं था?
शराब नीति घोटाले ने नुकसान किया
अरविंद केजरीवाल ने अपनी इमेज ऐसे नेता के रूप में पेश की थी, जो भ्रष्टाचार से कोसों दूर है और जो अपने साथियों के भ्रष्टाचार को भी सहन नहीं कर सकता। सितंबर 2021 में उन्होंने कहा था, ‘अगर मेरे ऊपर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों का कोई सबूत मिला, तो मैं इस्तीफा देने के लिए तैयार हूं।’
2021 में ही नई शराब नीति लागू हुई और इसमें घोटाले के आरोप लगे। एक साल के भीतर ही आप (AAP) सरकार को नई नीति वापस लेनी पड़ी, लेकिन नुकसान हो चुका था। मामले की जांच कर रही ईडी ने केजरीवाल को नौ समन भेजे, पर एक बार भी वह नहीं आए। आखिरकार 21 मार्च 2024 को ईडी ने उन्हें उनके घर से गिरफ्तार कर लिया।
भ्रष्टचार सहन नहीं करने की बात कहने वाले केजरीवाल जेल से ही सरकार चलाते रहे। विपक्ष के हमलों और जनता को हो रही परेशानी के बावजूद केजरीवाल ने सीएम पद नहीं छोड़ा। 13 सितंबर 2024 को उन्हें जमानत मिली। सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने सशर्त जमानत दी थी और इसके कारण केजरीवाल का सीएम ऑफिस जाना मुश्किल था। ऐसे में दो दिनों की जद्दोजहद के बाद उन्होंने इस्तीफा देने का ऐलान किया। हालांकि जिस आतिशी को अपनी जगह बैठाया, वह लगातार ऐसा बर्ताव करती रहीं, जैसे गद्दी तो केजरीवाल की ही है। AAP भूल गई थी कि सत्ता हमेशा किसी के साथ नहीं रहती।