

असदुल्लाह ने अभी 12 बरस ही पूरे किए हैं, लेकिन बातों से लगता है जैसे न जाने कितनी दुनिया देख ली हो। उसकी बातों में गंभीरता है और इसकी वजह है कि उसने बचपन ठीक से देखा ही नहीं। असदुल्लाह को याद नहीं कि कब वह सामान्य बच्चों की तरह खुलकर खेला हो, कब उसने कोई जिद की हो अपनी मां से। वह स्कूल नहीं जाता। इस उम्र में ही वह एक ऐसे मकसद के लिए आवाज उठा रहा है, जिसे लेकर दुनियाभर के मानवाधिकार संगठन चिंता जताते रहे हैं।
असदुल्लाह उन हजारों बलोच लोगों की रिहाई और घर वापसी की मांग कर रहा है, जिन्हें पाकिस्तानी सेना और पुलिस जबरन उठा ले गई और जिनका आज तक कोई पता नहीं है। वह कहता है, ‘हमारी हर रात खौफ में बीतती है। पता नहीं कब दरवाजे पर दस्तक शुरू हो जाए। अम्मी बताती है कि ऐसी ही एक रात अब्बू को सेना उठाकर ले गई थी। इसके बाद उनकी कोई खबर नहीं मिली।’ असदुल्लाह के पिता को जब उठाया गया, तब वह पैदा नहीं हुआ था। अब उसके जीवन का एक ही मकसद है, अपने पिता को वापस लाना।
असदुल्लाह बलूचिस्तान के उन हजारों बच्चों में से एक है, जिनका बचपन पाकिस्तानी सेना (Pakistan Army) और सरकार की नीतियों ने छीन लिया। इनमें से कोई अपने पिता के लौटने का इंतजार कर रहा है, कोई भाई का। सीमा के बड़े भाई शब्बीर 2016 में लापता हुए थे, जबकि आयशा के पिता 2019 में एक दिन घर से बाहर निकले तो फिर आए ही नहीं। क्वेटा से लेकर इस्लामाबाद तक समय-समय पर विरोध-प्रदर्शन का हिस्सा बनने वाले ये बच्चे वक्त से पहले ही बड़े हो चुके हैं।
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आयशा की मां शबनम कहती हैं, ‘हमारे बच्चों को बचपन नसीब ही नहीं हुआ। पाकिस्तान ने हमारे जीवन को तो बर्बाद कर दिया, लेकिन अब अपने बच्चों का भविष्य तबाह होते नहीं देख सकते। इन बच्चों में बहुत हिम्मत है, जो वे इस तरह डटे हुए हैं।’
लापता लोगों की वापसी की मांग को लेकर होने वाले प्रदर्शन के दौरान कभी-कभी सरकारी अफसर भी सादी वर्दी में पहुंच जाते हैं या फिर सेना के जवान आ धमकते हैं और धमकाने की कोशिश करते हैं। बच्चों पर इससे फर्क नहीं पड़ता। उनकी यह हिम्मत उनके अभिभावकों को भी लड़ने का जज्बा देती है और महरंग बलोच (Mahrang Baloch) को भी, जो अभी इन परिवारों के लिए उम्मीद की सबसे बड़ी किरण बनकर उभरी हैं।
न्याय के लिए लड़ रहीं महरंग
महरंग बलोच (Mahrang Baloch), बलूचिस्तान की उन आवाज़ों में से एक हैं जिन्होंने पाकिस्तान (Pakistan News) के सबसे रूढ़िवादी प्रांत में महिलाओं और युवाओं को राजनीतिक जागरूकता की दिशा में प्रेरित किया है। उनका संघर्ष न केवल व्यक्तिगत है, बल्कि बलूचिस्तान के उन हजारों लापता लोगों की लड़ाई भी है, जिनके लिए न्याय आज भी अधूरा सपना है। वह बलूचिस्तान की उन आवाजों में से हैं, जो पूरी दुनिया में सुनी जाती है और जिनसे पाकिस्तान डरता है।
महरंग का जन्म 1993 में बलूचिस्तान में हुआ था। उनके पिता अब्दुल गफ्फार बलोच एक सामाजिक कार्यकर्ता थे, जो पाकिस्तानी सेना और सरकार की ज्यादतियों का विरोध करते रहते। उन्हीं का असर था कि केवल 13 साल की उम्र में महरंग भी इन विरोध-प्रदर्शनों का हिस्सा बन गईं। 2005 में जब बलूचिस्तान संकट (Balochistan crisis) गहराया और पाकिस्तान का जुल्म और भी बरसने लगा, तब 2006 में महरंग पहली बार विरोध में सड़कों पर उतरीं।
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कम उम्र में ही वह आंदोलन का एक प्रमुख चेहरा बन चुकी थीं। इसी बीच, 2009 में उनके पिता एक दिन लापता हो गए। बलूचिस्तान में पुरुषों का इस तरह गायब हो जाना आम बात है। अब्दुल गफ्फार का शव दो साल बाद मिला। उनके जिस्म पर यातना के गहरे निशान थे। महरंग और उनके परिवार को चेतावनी दी गई थी कि वे अपना मुंह बंद रखें। हालांकि इसका असर उल्टा हुआ। पिता को खोने के बाद महरंग और भी शिद्दत से बलूचिस्तान के हक के लिए लड़ने लगीं।
भाई को अगवा किया, पर छोड़ना पड़ा
साल 2017 में महरंग (Mahrang Baloch) के भाई का अपहरण हो गया। हालांकि इससे भी कोई असर नहीं पड़ा। महरंग का आंदोलन चलता रहा और इस बार सरकार को झुकना पड़ा। 2018 में महरंग का भाई लौट आया। अपने अभियान को बड़े स्तर पर ले जाने के लिए उन्होंने 2019 में बलूच यूथ काउंसिल (BYC) की स्थापना की। वह छोटी-छोटी बैठकें करके लोगों को जोड़ने लगीं। उन्होंने स्कूलों में जा-जाकर युवाओं को राजनीतिक रूप से जागरूक किया। उनका सबसे अहम काम है महिलाओं को सशक्त बनाना।
घर के पुरुष के अचानक लापता हो जाने के बाद परंपरावादी समाज में एक महिला के लिए घर चलाना आसान नहीं होता। खासकर जब उसे यह भी डर हो कि एक दिन उसके छोटे-छोटे बच्चे या भाई को भी सरकारी सिस्टम यूं ही गायब कर सकता है। महरंग ने ऐसी महिलाओं को एकजुट किया। वह घर-घर जाकर लोगों से मिलीं और उन्हें समझाया कि बलूचिस्तान की लड़ाई महिलाओं के बिना आगे बढ़ ही नहीं सकती।
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उनकी कोशिशों ने लड़कियों से लेकर दादी-नानियों तक को आंदोलन से जोड़ा और उसे मजबूती दी। महरंग कहती हैं, ‘हमारा सबसे प्रगतिशील पहलू यह है कि हजारों महिलाएं, चाहे वे किसी भी उम्र की हों, अब सड़कों पर आ रही हैं। इससे बलूच आंदोलन को न केवल मजबूती मिली है, बल्कि इसने एक नई दिशा भी दिखाई है।’
हजारों लोग अब भी ‘लापता’
Voice for Baloch Missing Persons के अनुसार, 2000 के दशक से अब तक बलूचिस्तान के 5,000 से अधिक लोग लापता हुए हैं। 2016 के बाद से ही देखें तो 6,224 लोगों के अपहरण की सूचना दर्ज की गई। इनमें से 2,065 लोग रिहा हुए और 2,766 मारे गए। बाकियों के बारे में कोई जानकारी नहीं है। पाकिस्तानी सरकार इन आंकड़ों को खारिज करती है। वह इनकार करती है कि सेना या किसी दूसरे विभाग ने बलोच पुरुषों को अगवा किया है, लेकिन बलूच आंदोलनकारियों के लंबे मार्च और प्रदर्शन इस दर्दनाक सच्चाई को सामने लाते हैं।
महरंग बलोच की बढ़ती लोकप्रियता और आंदोलन की गहराई ने पाकिस्तान (Pakistan news) को चिंता में डाल दिया है। जिस तरह से वह शांतिपूर्ण विरोध दर्ज कराती हैं और लोगों को जागरूक करती हैं, उसने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सभी का ध्यान खींचा है। पाकिस्तानी सरकार को डर है कि यह स्थिति 1971 के बांग्लादेश स्वतंत्रता आंदोलन जैसी बन सकती है।