

पूरी दुनिया को आईफोन और आईपैड की लत लगाने वाले Apple के संस्थापक स्टीव जॉब्स का घर कैसा होगा? अगर आपको लगता है कि उनके घर में हर जगह आधुनिक गैजेट बिखरे पड़े होंगे, तो इसमें कुछ गलत नहीं। आखिर जिस शख्स ने टेली कम्युनिकेशन की दिशा बदल दी, उसका खुद का आशियाना तो हाईटेक होगा ही! लेकिन, यहीं पर दुनिया मात खा गई।
‘Steve Jobs : The Exclusive Biography’ के लेखक Walter Isaacson लिखते हैं कि स्टीव जॉब्स का जीवन सादगी भरा था। वह minimalist थे यानी कम चीजों में गुजारा और अपने काम पर फोकस रखते। यही बात उनके घर में भी दिखाई देती थी। उनके डाइनिंग टेबल पर iPads जैसे गैजेट्स की जगह किताबें और अन्य पारंपरिक चीजें रहती थीं।
जॉब्स मानते थे कि घर में रचनात्मकता और सार्थक बातचीत को बढ़ावा देना चाहिए। उन्होंने अपने बच्चों को भी ज्यादा स्क्रीन टाइम से दूर रखा। एक इंटरव्यू में उन्होंने बताया कि उनके बच्चे कितना इंटरनेट इस्तेमाल करेंगे, यह वे तय करते हैं। स्टीव जॉब्स ने बच्चों को परंपरागत ढंग से सिखाने पर जोर दिया।
स्टीव जॉब्स ने जो किया, क्या वह अब भी करना चाहिए? ज्यादातर माता-पिता के सामने यही सवाल है। आज स्मार्टफोन जिंदगी की सबसे बड़ी जरूरत बनकर उभरे हैं। नौकरी, पढ़ाई, व्यापार, मनोरंजन- ऐसा कोई काम नहीं, जो स्मार्टफोन की मदद से न हो पाए।
कोरोना ने तो हमारे जीवन में इसे और मजबूती से स्थापित कर दिया। ऑनलाइन क्लासेज जो महामारी के दौर में मजबूरी थीं, आज जरूरत बन चुकी हैं। हालांकि स्मार्टफोन के तमाम नुकसान भी हैं। आंखों और दिमाग पर असर, अवसाद में घिर जाना, समाज से कट जाना, चिंता वगैरह। ऐसे में सवाल यही है कि बच्चों को स्मार्टफोन दें तो कब?
विभिन्न उम्र में स्मार्टफोन का प्रभाव (Impact of smartphones on children)
उम्र : 4 से 6 साल
इस उम्र में बच्चे सबसे अच्छा तब सीखते हैं जब वे माता-पिता, भाई-बहन, दोस्तों के साथ बातचीत करते हैं। जितना ज्यादा वे दूसरों से बात करेंगे, घुलेंगे-मिलेंगे, उतना ही उनका विकास होगा। मोबाइल फोन उनसे यह मौका छीन लेता है।
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कम उम्र में स्मार्टफोन का इस्तेमाल करने से बच्चे लोगों के साथ बातचीत से जुड़ी जरूरी बातें, जैसे दूसरों को सम्मान देना, प्यार करना, हावभाव समझना, वगैरह नहीं सीख पाते। सोशल स्किल्स नहीं विकसित हो पातीं। दूसरों से कनेक्ट करने में दिक्कत होती है। बच्चा खुद में खोया-खोया रहने लग सकता है।
इसके अलावा, स्मार्टफोन की चमकती स्क्रीन से मस्तिष्क पर बुरा असर पड़ता है। फोन देखते समय ‘डोपामाइन’ नाम का हार्मोन रिलीज होता है। इसी की वजह से हमें खुशी महसूस होती है। अगर कम उम्र में ही बच्चों को स्मार्टफोन से खुशी मिलने लगी, तो आगे चलकर वे इसी पर निर्भर हो सकते हैं। उन्हें ध्यान केंद्रित करने में दिक्कत हो सकती है। इसीलिए, कनाडियन पीडियाट्रिक सोसायटी (CPS) सलाह देती है कि दो साल से छोटे बच्चों को किसी भी तरह की स्क्रीन से दूर रखना चाहिए। 2 से 5 साल तक के बच्चों का स्क्रीन टाइम एक दिन में एक घंटे से कम होना चाहिए।

उम्र : 7 से 11 साल
इस उम्र में बच्चे अपने माता-पिता से थोड़ा स्वतंत्र महसूस करने लगते हैं। वे ज्यादातर समय स्कूल में और स्कूल के बाद की गतिविधियों में बिताते हैं। ऐसे में माता-पिता बच्चों से जुड़े रहने के लिए उन्हें फोन देना जरूरी समझते हैं। ऐसे में फोन देना फायदेमंद हो सकता है। लेकिन, 10 साल के बच्चे को फोन देना सही है या नहीं, इसका सीधा जवाब नहीं है।
दिक्कत यह है कि बच्चे बिना माता-पिता की जानकारी के सोशल मीडिया का इस्तेमाल शुरू कर सकते हैं। यह खतरनाक है क्योंकि इस उम्र में बच्चे यह नहीं समझ पाते कि सोशल मीडिया पर कुछ पोस्ट करने के क्या मायने हैं या नकारात्मक बातें कैसे संभालनी चाहिए। वे साइबरबुलिंग का शिकार हो सकते हैं।
सोशल मीडिया का सबसे बड़ा खतरा यह है कि यूजर उसे ही सच मानने लगता है। 7 से 11 साल की उम्र के बच्चों को अब भी बहुत सारी बातें सीखनी बाकी होती हैं। जब वे सोशल मीडिया के संपर्क में आते हैं, तो खतरा है कि स्क्रीन लाइफ को रियल लाइफ से ज्यादा महत्व देने लगें। फिर उनमें होड़ हो सकती है कि कौन सोशल मीडिया पर ज्यादा दोस्त बनाता है या ज्यादा कूल दिखता है। यह होड़ किसी भी तरह से अच्छी नहीं है (disadvantages of social media)।
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इंटरनेट की दुनिया बहुत विशाल है। वहां हर तरह का कंटेंट और लोग मौजूद हैं। ऐसे में बच्चों का सामना नकारात्मक बातों से हो सकता है, जो उनके लिए सही नहीं। इस उम्र में सोचने-समझने की क्षमता (critical thinking) पूरी तरह विकसित नहीं होती, जिससे वे ऑनलाइन खतरों को पहचान नहीं पाते।
सावधानी
- इस उम्र में माता-पिता साधारण फोन (बिना इंटरनेट वाले) दे सकते हैं।
- बच्चों की स्मार्टफोन गतिविधियों पर नजर रखें।
- सोशल मीडिया और गेमिंग ऐप्स से दूर रखें।
उम्र : 12 से 14 साल
यह उम्र है हाईस्कूल वाली। बच्चों के सामने करियर का सवाल आने लगता है। उनसे पूछा जाने लगता है कि आगे उनकी क्या प्लानिंग है? वे बहुत कुछ नया सीखते हैं और इसी दौरान नई टेक्नॉलजी का इस्तेमाल करते हैं। इस उम्र के बच्चों को सबसे ज्यादा लगता है कि उनके पास अपना एक स्मार्टफोन होना चाहिए।
कुछ हद तक यह मांग जायज भी है, क्योंकि आज सीखने का सबसे बड़ा प्लेटफॉर्म स्मार्टफोन हैं। पढ़ाई में उनसे बहुत मदद मिलती है। फिर, यह उम्र ऐसी है, जहां बच्चा कई समस्याओं को खुद सुलझाने लायक हो चुका होता है। उसके अपना फ्रेंड सर्किल होता है। वह अपने हिसाब से उन दोस्तों के साथ बातें करता है।
कई माता-पिता को लग सकता है कि उनका बच्चा गंभीर है और वह स्मार्टफोन का इस्तेमाल करने के लिए तैयार है। हालांकि जरूरी नहीं है कि ऐसा हो। कुछ सवाल आप खुद से पूछ सकते हैं और इसके आधार पर तय कीजिए कि क्या अब बच्चे को स्मार्टफोन देने का समय आ गया-
- स्मार्टफोन जरूरत है या बच्चा सिर्फ दोस्तों के साथ बातचीत करने के लिए मांग रहा है?
- कई बार एक-दूसरे को देखकर भी बच्चों में फोन की चाहत जगती है, कहीं यही बात तो नहीं?
- क्या बच्चा इतना समझदार है कि जान सके फोन कितनी देर इस्तेमाल करना है, किससे और कब बात करनी है?
- क्या उसका सोशल मीडिया अकाउंट है और कहीं वह इसी के लिए तो फोन नहीं मांग रहा?
- क्या उसे पता है कि किन ऐप्स को डाउनलोड करना चाहिए और इंटरनेट पर कैसा कंटेंट देखना चाहिए?
सावधानी
- बच्चों को बताएं कि स्मार्टफोन (Right use of smartphone) का इस्तेमाल किसलिए करना है।
- फोटो, वीडियो और टेक्स्ट मैसेजिंग के लिए सख्त नियम बनाएं।
- बच्चों के फोन में parental controls लगाएं।
उम्र : 14 से 18 साल
इस उम्र में बच्चों का प्रीफ्रंटल कॉर्टेक्स (prefrontal cortex) लगभग पूरी तरह विकसित हो जाता है। यह दिमाग का वह हिस्सा है जो निर्णय लेने, सोचने, सीखने और भाषा से जुड़ी क्षमताओं को नियंत्रित करता है। यह ज्ञान प्राप्त करने, तर्क करने, योजना बनाने और चीजों को व्यवस्थित करने में मदद करता है। इस उम्र के ज्यादातर बच्चे स्मार्टफोन के लिए तैयार माने जाते हैं।
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टेक दिग्गज बिल गेट्स ने भी अपने बच्चों को 14 साल की उम्र से पहले स्मार्टफोन नहीं दिया था। हालांकि, जरूरी नहीं कि इस उम्र के सारे बच्चे परिपक्व हों। उन्हें बिना किसी निगरानी के यूं ही स्मार्टफोन थमा देना नुकसादेह हो सकता है।
सावधानी
- बच्चों को स्मार्टफोन उपयोग की अच्छे आदतें सिखाएं।
- पढ़ाई और निजी समय के बीच संतुलन बनाने की सलाह दें।
- रात को सोने से पहले स्मार्टफोन बंद करने की आदत डालें।
स्मार्टफोन के जल्दी इस्तेमाल से नुकसान (Disadvantages of early use of smartphone)
- ज्यादा स्क्रीन टाइम से मस्तिष्क के विकास में बाधा आती है।
- कॉर्टेक्स (cortex) पतला होने लगता है, जिससे सोचने-समझने की क्षमता कम होती है।
- बच्चों की दूसरों से बात करने की क्षमता प्रभावित होती है।
- बच्चे अनजाने में ऐसे कंटेंट तक पहुंच सकते हैं, जो उनके लायक नहीं।
- साइबर बुलिंग का शिकार हो सकते हैं।
- ज्यादा स्क्रीन टाइम से डिप्रेशन, एंग्जाइटी और पढ़ाई में ध्यान केंद्रित न कर पाने की समस्या हो सकती है।
सावधानियां और सुझाव
- बच्चों को प्यार से समझाएं और कुछ नियम बनाएं घर में, जैसे कि कब और कितनी देर फोन देख सकते हैं।
- माता-पिता खुद स्मार्टफोन का इस्तेमाल सीमित करें और बच्चों को सही आदतें सिखाएं।
- शुरुआत में बच्चों को ऐसा फोन दें, जिसमें केवल कॉल और मैसेज की सुविधा हो।
- बच्चों के फोन में parental controls लगाएं और लोकेशन सर्विस सीमित करें।
- बच्चों के स्क्रीन टाइम को सीमित करें, खासकर सोने और खाने के समय।
- अगर बच्चे स्मार्टफोन के लिए जिद कर रहे हैं, तो माता-पिता बेसिक मोबाइल फोन, किड्स स्मार्टवॉच और डिजिटल कैमरा दे सकते हैं। इनसे क्रिएटिविटी और एक्टिविटी का मौका मिलता है।
स्मार्टफोन का उपयोग आज की जरूरत है, लेकिन इसका इस्तेमाल जिम्मेदारी से करना जरूरी है। सही उम्र में स्मार्टफोन देना और बच्चों को उसकी सीमाओं के बारे में सिखाना उनकी सुरक्षा और विकास के लिए बेहद जरूरी है। माता-पिता को बच्चों के साथ संवाद बनाए रखना चाहिए और समय-समय पर उनके स्मार्टफोन उपयोग की समीक्षा करनी चाहिए।