

अगर आपको एक्सरसाइज पसंद नहीं है, तब तो जरूर आपने कभी न कभी किसी से यह नसीहत जरूर सुनी होगी कि सुबह जल्दी उठकर कसरत किया करो! हमारे कानों में किसी न किसी तरह से यह आवाज डाली जाती रही है कि स्वस्थ रहने के लिए एक्सरसाइज बहुत जरूरी है।
कोई 40 मिनट तो कोई एक घंटे वर्जिश को देने के लिए कहता है। सुबह-शाम जिम में पसीना बहाते और पार्कों में दौड़ लगाते लोग दिखते हैं, तो एक्सरसाइज न करने वाले हम जैसे लोगों को लगता है कि कितना बड़ा गुनाह हो गया। एक पल को दिमाग कहता है कि चलो, इस गुनाह से तौबा कर लेते हैं और कल से एक्सरसाइज शुरू करते हैं। हालांकि वह कल आज तक तो आया नहीं।
अब यहां सवाल है कि क्या हम आलसी हैं? क्या हम अपने शरीर को धोखा दे रहे? क्या हम अजीब हैं, जो एक्सरसाइज नहीं कर रहे? हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर और जीवाश्म विज्ञानी Daniel Lieberman को पढ़ने के बाद आप ये सारे सवाल भूल जाएंगे। वह अपनी किताब ‘Exercised : Why Something We Never Evolved to Do Is Healthy and Rewarding’ में कहते हैं कि लोग अजीब नहीं हैं, बल्कि कसरत करने का हमारा तरीका अजीब है।
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उनका कहना है कि हम कभी कसरत करने के लिए विकसित ही नहीं हुए। विकासक्रम के दौरान इंसानों का झुकाव शारीरिक आराम की तरफ झुका हुआ था, थकाने वाली कसरत करने के लिए नहीं।
आराम पसंद शिकारी थे हमारे पूर्वज
डैनियल लिबरमैन के मुताबिक, हमारे शिकारी-पूर्वज आरामपसंद थे। वे फालतू भटकने या अतिरिक्त मेहनत करने से बचते थे। वे केवल जरूरत पड़ने पर सक्रिय होते थे, जैसे कि शिकार पकड़ने के लिए दौड़ना। लेकिन, यह निष्क्रियता उनकी कमजोरी या आलस नहीं, ऊर्जा बचाने की रणनीति थी। हमारे पूर्वजों को अपनी कैलोरी जलाने के लिए अतिरिक्त मेहनत नहीं करनी पड़ती थी। उल्टे, वे अपनी कैलोरी बचाते थे।
दूसरी ओर, हमारी आधुनिक जिंदगी ऐसी है, जिसमें हमें उसी कैलोरी को जलाने के लिए कसरत करनी पड़ती है। यूं कसरत हमारे स्वाभाविक जीवन का हिस्सा कभी नहीं रही। आज हम आधुनिक इंसान इन्हीं आदतों को जिम और फिटनेस (Fitness tips) की अवधारणाओं में ढालने की कोशिश करते हैं। लेकिन क्या यह सही तरीका है? लिबरमैन की सोच कहती है कि हमें इस पर फिर से विचार करने की जरूरत है।
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प्रोफेसर लिबरमैन का तर्क है कि कसरत केवल तभी करनी चाहिए, जब यह जरूरी हो या सामाजिक लाभ प्रदान करती हो। वह सलाह देते हैं कि दोस्तों के साथ टहलना या खेल-कूद करना फिटनेस पाने का बेहतर तरीका है, बजाय इसके कि आप घर में ट्रेडमिल पर अकेले दौड़ें।

क्या खाली बैठे रहना धूम्रपान की तरह है?
Sitting Is The New Smoking! बैठना मतलब बीमारियों को दावत देना, जैसे कि सिगरेट पीकर बीमार पड़ना। हालांकि Daniel Lieberman की राय यहां भी बिल्कुल अलग है। उनका मानना है कि हमारे पूर्वज भी अपना अधिकतर समय बैठकर बिताते थे।
दिक्कत तब होती है, जब लंबे समय तक बैठे रहने से शरीर की मांसपेशियां निष्क्रिय हो जाती हैं। इस समस्या का समाधान भी आसान है, हर 10-15 मिनट पर उठकर थोड़ा चलना। बैठना उतना खतरनाक नहीं है, जितना सिगरेट पीना। खड़े होकर काम करना भी कोई चमत्कारी हल नहीं है। इसके बजाय, हल्का-फुल्का हिलना-डुलना और हाथ-पैरों की हरकतें करना बेहतर है।
नींद के मामले में भी डेनियल का मानना है कि 7 घंटे सोना पर्याप्त है। जो लोग 8 घंटे से कम सोते हैं, उन्हें इसके लिए तनाव नहीं लेना चाहिए।
तेज दौड़कर मेडल जीतना है क्या?
सुबह-शाम दौड़ना, यह ऐसा शगल है, जिसमें आपको हर दूसरा आदमी व्यस्त मिलेगा। लोग सोचते हैं कि वे जितना तेज दौड़ सकते हैं, उतना ही बेहतर। हालांकि डेनियल का कहना है कि इंसान की ताकत उसकी रफ्तार में नहीं, बल्कि सहनशक्ति में है।
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हम बाकी जानवरों जितने तेज नहीं दौड़ सकते, लेकिन हम लगातार दौड़ते रह सकते हैं। पसीने से शरीर ठंडा रखना और थकावट से शिकार को पछाड़ देना हमारी खासियत है। यही कारण है कि इंसान अन्य तेज दौड़ने वाले जानवरों के सामने भी शिकार कर पाता था। इसी सहनशक्ति के कारण आज इंसान अपने कठिन लक्ष्य हासिल कर पाता है।
फिटनेस का प्राकृतिक तरीका
डेनियल लिबरमैन के मुताबिक, रोजमर्रा के छोटे-छोटे काम जैसे चलना, झुकना, सामान उठाना ही फिट रहने के लिए पर्याप्त हैं। ट्रेडमिल पर दौड़ने या डंबल उठाने की जरूरत नहीं है। कसरत का मकसद फिटनेस को सख्ती से निभाना नहीं है, बल्कि उसे अपने जीवन का सहज हिस्सा बनाना है।
कसरत मधुमेह, हृदय रोग, अल्जाइमर और कैंसर (Diabetes, heart disease, Alzheimer’s and cancer) जैसी बीमारियों से लड़ने में मदद करती है। कसरत हमेशा मजेदार नहीं होती, लेकिन इसे बेहतर बनाया जा सकता है। कुछ सुनते हुए एक्सरसाइज करें, इसे खेल का रूप दें या दोस्तों के साथ मिलकर करें।
डेनियल लिबरमैन की किताब हमें सिखाती है कि फिटनेस कोई बड़ा संघर्ष नहीं, बल्कि सरल और प्राकृतिक जीवनशैली अपनाने का नाम है। आराम और सहनशक्ति हमारी विरासत हैं। बस जरूरत है इन्हें समझने और आधुनिक जीवन में अपनाने की। जिम न जा पाने का अफसोस करने की जगह अपने शरीर और उसके स्वाभाविक कामों को सराहिए। यही असली स्वास्थ्य का राज है।