

जुरासिक पार्क फिल्म तो याद होगी आपको। पहली वाली फिल्म, जिसमें पहली बार दर्शकों ने पर्दे पर इतने विशाल जीवों को देखा। उसमें बताया जाता है कि कैसे पार्क के वैज्ञानिकों को पेड़ के गोंद में लिपटा एक मच्छर का करोड़ों साल पुराना जीवाश्म मिला था।
उस मच्छर ने डायनासोर का खून चूसा और फिर उस पेड़ पर जाकर बैठ गया था। जुरासिक पार्क के वैज्ञानिकों ने उस मच्छर के पेट में जमे खून से डायनासोर का डीएनए निकाला। फिर टेक्नॉलजी की मदद से नए डायनासोर खड़े कर दिए।
यह कहानी पूरी फिल्मी है, लेकिन कुछ ऐसा ही हुआ है अंटार्कटिका में और उसकी मदद से इंसानी विकास का एक बड़ा रहस्य खुल सकता है। इस बार वैज्ञानिकों के हाथ दुनिया की सबसे पुरानी बर्फ लगी है। इस बर्फ की उम्र लगभग 12 लाख साल है और उम्मीद जताई जा रही है कि यह अतीत में झांकने की खिड़की खोल देगी।
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-35 डिग्री तापमान में बहाया पसीना
इस बर्फ को हासिल करना इतना आसान नहीं था। 10 यूरोपीय देशों ने मिलकर यह अभियान चलाया। इसकी अगुवाई Italian Institute of Polar Sciences कर रहा था। अंटार्कटिका के पूरब में लिटिल डोम सी नाम की जगह पर वैज्ञानिकों की टोली ने कई हफ्ते काम किया।
यहां सबसे बड़ी चुनौती थी मौसम। तापमान माइनस 35 डिग्री था। टीम को समुद्र की सतह से 3000 मीटर की ऊंचाई पर काम करना था तो तेज हवाओं से भी टक्कर मिल रही थी। इस साइट से सबसे नजदीकी रिसर्च बेस करीब 40 किलोमीटर दूर है। टीम को सारे जरूरी उपकरण इतनी दूर ढोकर ले जाने पड़े।
इतनी कड़ी मेहनत के नतीजे में वैज्ञानिकों को 2.8 किलोमीटर लंबा बर्फ का टुकड़ा मिला है। इसे बेहद सावधानी से काटकर निकाला गया है, सिलेंडर के आकार में। इस बर्फ में छोटे-छोटे बुलबुले कैद हैं, जिनमें लाखों साल पुरानी हवा कैद है। वैज्ञानिक इन बुलबुलों से यह समझने की कोशिश करेंगे कि 9 लाख से 12 लाख साल पहले ऐसा क्या हुआ था, जब बर्फ के बनने और पिघलने का चक्र बदल गया था।

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कुछ वैज्ञानिकों का मानना है कि उसी समय हमारे पूर्वज विलुप्त होने के कगार पर पहुंच गए थे। इस प्रोजेक्ट का नेतृत्व इटली के वैज्ञानिक प्रोफेसर Carlo Barbante कर रहे थे। एक मीडिया संगठन से बातचीत में उन्होंने कहा, ‘यह बहुत बड़ी उपलब्धि है। हमारे हाथों में 10 लाख साल पुरानी बर्फ है। इसमें ज्वालामुखी से आई राख और बुलबुले हैं, जिनमें हमारे पूर्वजों की सांसें कैद हैं।’
यह बर्फ वैज्ञानिकों को यह समझने में मदद करेगी कि धरती की जलवायु समय के साथ कैसे बदली है। बर्फ के अंदर कैद हवा और कण यह दिखाते हैं कि ग्रीनहाउस गैसों और तापमान में कैसे बदलाव हुए।
8 लाख साल पीछे जा चुके हैं
वैज्ञानिक पहले भी बर्फ के जरिये धरती पर हुए बदलावों को समझते रहे हैं। बल्कि इसके लिए 1996 में European Project for Ice Coring in Antarctica या शॉर्ट में कहें तो EPICA शुरू किया गया।
एपिका ने अंटार्कटिका की बर्फ से 3.2 किलोमीटर लंबा सिलेंडर निकालकर 8 लाख साल तक का जलवायु इतिहास खोज निकाला है। इससे साबित हुआ कि ग्रीनहाउस गैसों में वृद्धि और पृथ्वी के तापमान में बदलाव का गहरा संबंध है। यह भी पता चला कि ग्लोबल वॉर्मिंग जैसी जलवायु से जुड़ी समस्याएं इंसानों के जीवाश्म ईंधन जलाने से खड़ी हुई हैं।
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अब नई रिसर्च को बियॉन्ड एपिका कहा जा रहा है, जिसमें वैज्ञानिक समय में और पीछे जाना चाहते हैं। इस बार उन्होंने 12 लाख साल पुरानी बर्फ निकाली है। 9 लाख से 12 लाख साल पहले के समय को मिड-प्लाइस्टोसीन ट्रांजिशन कहते हैं। उस समय बर्फ के जमने और पिघलने का चक्र 41 हजार साल से बढ़कर एक लाख साल का हो गया था। इसका कारण अब तक पता नहीं चला है।
ऐसा माना जाता है कि उस समय हमारे पूर्वजों की संख्या केवल 1000 तक रह गई थी। वैज्ञानिक यह जानने की कोशिश कर रहे हैं कि जलवायु बदलाव और इंसानी अस्तित्व के बीच कोई संबंध है या नहीं। बर्फ के लंबे सिलेंडर को छोटे-छोटे टुकड़ों में काटकर यूरोप ले जाया जाएगा। वहां इस पर गहराई से अध्ययन होगा। उम्मीद करते हैं कि तब हमें अपने अतीत की और जानकारियां मिलेंगी।
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