

प्रयागराज समेत देश में चार जगह महाकुंभ (Prayagraj Mahakumbh) लगता है। मान्यता है कि समुद्र मंथन से निकले अमृत कलश से चार बूंदें इन चार जगहों पर गिरी थीं। समुद्र मंथन देव और दानवों ने मिलकर किया था। मंथन से मिली हर चीज दोनों में बंटनी थी, लेकिन अमृत चखने से दानव अमर हो जाते और फिर सृष्टि का संतुलन बिगाड़ देते।
इस पौराणिक कथा से ही स्पष्ट होता है कि अमृत का क्या महत्व है। इंसान में जब से समझ विकसित हुई, तब से वह इसकी तलाश में भटक रहा है। कभी वह धर्म-अध्यात्म के जरिये अमर होने की कोशिश करता है, तो कभी विज्ञान के जरिये।
अमर होने की चाहत से जुड़ी यह कहानी ऐतिहासिक भी है और वैज्ञानिक भी। ईसा से करीब सवा दो सौ साल पहले चीन के पहले सम्राट ने अमर होने की कोशिश की थी। अपने प्रयोगों के लिए उसने कई जानें भी लीं और आखिर में खुद भी एक प्रयोग में मारा गया।
टेराकोटा की सेना, चीन की दीवार
चिन शी हुआंग (Qin Shi Huang) का असली नाम यिंग झेंग था। उसके पिता किन (Qin) राज्य के राजा थे। केवल 13 साल की उम्र में 247 ईसा पूर्व उसे अपने पिता की गद्दी मिली। राज्य के एक व्यापारी ने सत्ता तक पहुंचने में उसकी मदद की थी। करीब 26 साल वह राजा रहा और इस दौरान कई युद्ध लड़े।
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ईसा पूर्व 221 तक चिन शी हुआंग ने छोटी-बड़ी तमाम रियासतों को मिलाकर एक विशाल साम्राज्य खड़ा कर दिया और खुद को इसका सम्राट घोषित किया। वह चीन का पहला सम्राट था और उसी ने किन साम्राज्य (Qin dynasty) की नींव रखी।
चीन में प्रशासनिक और आर्थिक सुधारों की शुरुआत का श्रेय उसे दे सकते हैं। उसने जो व्यवस्था चालू की, वह अगले करीब दो हजार बरस चलती रही। आपने चीन की टेराकोटा की सेना (Terracotta Army) के बारे में सुना होगा, वह दरअसल इसी सम्राट का मकबरा है। चीन की दीवार बनवाने की पहल भी इसी ने की थी।
लेकिन हमारी कहानी न टेराकोटा की सेना पर है और न चीन की दीवार पर, यह कहानी है अमरता की खोज पर। तो जैसे-जैसे चिन शी हुआंग की उम्र बढ़ रही थी, उसे मौत का डर सताने लगा और इसी के साथ शुरू हुई उसकी अमरता की चाहत।
चीन के शानडोंग प्रांत में झिफू द्वीप (Zhifu) है। प्राचीन मिथक है कि यहां अमरता का पहाड़ मौजूद है। चीन के पहले सम्राट ने इस पहाड़ की खोज में तीन बार इस द्वीप की यात्रा की। उसने कुछ शिलालेख भी बनवाए थे, जो आज भी द्वीप पर मौजूद हैं।
जब सम्राट खुद सफल नहीं हो पाया, तो उसने झिफू द्वीप के एक नागरिक शू फू को इसकी जिम्मेदारी सौंपी। झिफू की तरह ही चीनी मिथकों में माउंट पेंगलाई नाम की भी जगह है। इसका जिक्र वियतनाम और जापान के मिथकों में भी मिलता है।
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शू के साथ सैकड़ों युवा पुरुष और महिलाओं को भेजा गया था। ये लोग कभी लौटकर नहीं आए। कहा जाता है कि कोई भी सम्राट को असफलता की खबर नहीं देना चाहता था। ऐसे में वे लोग जापान चले गए और वहां शासन करने लगे।
विद्वानों को जिंदा दफनाया, ताकि सच पता चले
चिन शी हुआंग ने अपने शासनकाल में हजारों पुस्तकें जलवा दीं, लेकिन उसने रसायन शास्त्र से जुड़ी और ऐसी किसी भी किताब को नुकसान नहीं पहुंचाया जिसमें अमरता का जिक्र था। उसे लगता था कि इनके जरिये वह अपनी मंजिल तक पहुंच सकता है।
सम्राट के निर्देश पर कई विद्वान अमरता को लेकर विभिन्न प्रयोग करते रहते थे। वे विभिन्न रसायन तैयार करते और सम्राट को देते। कहा जाता है कि सम्राट ने सैकड़ों विद्वानों को जिंदा दफना दिया था, बस यह देखने के लिए कि वे अमरता का जो प्रयोग कर रहे हैं, वह काम का भी है या नहीं।
उल्कापिंड का गिरना और मौत की भविष्यवाणी
उम्र के साथ चिन शी हुआंग की सनक बढ़ती जा रही थी। ईसा पूर्व 211 में येलो रिवर के किनारे एक उल्कापिंड गिरा। तब यह दुर्लभ आकाशीय घटना हुआ करती थी। खबर फैल गई कि चीन के पहले सम्राट की मौत होगी और उसका साम्राज्य बिखर जाएगा। जब यह खबर सम्राट तक पहुंची तो उसने अपने फौजी दस्ते को भेज दिया।
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चीनी सैन्य अधिकारी खोजबीन में जुट गए कि आकाशीय संदेश कैसे आया था। इसका पता तो लगना नहीं था और आखिर में गुस्साई सेना ने आसपास के कई गांवों में जमकर तबाही मचाई।
अब इसे संयोग ही कहिए कि इसी के कुछ महीनों बाद जब सम्राट पूर्वी चीन के अपने दौरे पर निकला था, तभी गंभीर रूप से बीमार हो गया और 210 ईसा पूर्व में उसकी मौत हो गई।
जीवनभर अमरता की खोज में रहने वाले चीनी सम्राट को केवल 49 बरस का जीवन नसीब हुआ। उसकी मौत को लेकर आज भी संदेह जताया जाता है। कहते हैं कि उसे जहर दिया गया था, जिससे उसकी तबियत बिगड़ती चली गई। लेकिन यह जहर उसने जानबूझकर पिया था। अमरता के चक्कर में उसके राजवैद्यों और रसायन विज्ञानियों ने मर्करी से एक घोल तैयार किया था। पारा ही सम्राट की मौत की वजह बना।