
Mystery of Soul
दुनिया के लगभग सभी धर्मों में आत्मा का जिक्र मौजूद है। इसे जीवन का मूल तत्व माना गया है, जिसका अस्तित्व मौत के बाद भी रहता है। हिंदू धर्म में आत्मा को अनश्वर और शाश्वत माना गया है, जो शरीर के मरने के बाद पुनर्जन्म लेती है और अंततः मोक्ष प्राप्त करती है। भगवद्गीता में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं, (Gita Shlok)
‘वासांसि जीर्णानि यथा विहाय
नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि।
तथा शरीराणि विहाय जीर्णा
न्यानि संयाति नवानि देही।’ (गीता 2.22)
यानी, जैसे मनुष्य पुराने कपड़ों को त्यागकर नए वस्त्र धारण करता है, वैसे ही आत्मा पुराने शरीर को छोड़कर नया शरीर धारण करती है। इसी तरह, ईसाई और इस्लाम धर्म में भी माना गया है कि शरीर की मौत होती है, आत्मा की नहीं। कर्म के आधार पर आत्मा को स्वर्ग-नर्क या जन्नत-जहन्नुम में जाना पड़ता है। हालांकि बौद्ध धर्म स्थायी आत्मा के विचार को अस्वीकार करता है और ‘अनात्मा’ के सिद्धांत पर जोर देता है।
कोई आत्मा को माने या नहीं, लेकिन चर्चा जरूर होती है उसकी। केवल धर्म ही नहीं, विज्ञान भी यह समझने की कोशिश करता रहा है कि आत्मा आखिर है क्या? Mystery of Soul को सुलझाने की कोशिश हमेशा होती रही है।
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अगर यह होती है, तो क्या इसका वजन भी होता है? इसी सवाल ने उस प्रयोग को जन्म दिया, जिसे इतिहास में 21 grams experiment के नाम से जाना जाता है। यह प्रयोग किया था डंकन मैकडुगल (Duncan MacDougall) नाम के अमेरिकी वैज्ञानिक ने।

तराजू से तौली आत्मा!
मैकडुगल ने लिखा है, ‘चूंकि… हमारी परिकल्पना के अनुसार यह पदार्थ (आत्मा) शरीर से मौत तक जुड़ा रहता है, इसलिए यह अधिक तर्कसंगत लगता है कि यह गुरुत्वीय पदार्थ के रूप में हो सकता है, और मृत्यु के समय इसका वजन मापा जा सकता है।’
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उन्होंने दक्षिणी-पश्चिमी इंग्लैंड के एक काउंटी शहर डोरचेस्टर के एक अस्पताल से संपर्क कर अपने प्रयोग के लिए उसे मना लिया। इसके लिए उन्होंने एक बड़ा तराजू बनवाया, जिस पर मरीजों को बेड समेत रखकर तौला जा सकता था। यह तराजू बड़ा होने के बावजूद बेहद सटीक था और 5.6 ग्राम वजन तक के बदलाव को माप सकता था।
इस हॉस्पिटल में टीबी के मरीजों का इलाज होता था। मैकडुगल को ऐसे ही मरीज चाहिए था, जो शारीरिक रूप से कमजोर हों ताकि तराजू में वे हिले-डुले नहीं। उन्होंने ऐसे 6 मरीज चुने, जिनकी मौत करीब थी। जब डॉक्टरों ने बताया कि ये मरीज मरने वाले हैं, तो मैकडुगल ने उन्हें तराजू पर तौलना शुरू किया।
पहला मरीज एक पुरुष था। उसकी मौत 10 अप्रैल 1901 को हुई। मौत के बाद तराजू पर वजन अचानक से 21.2 ग्राम दिखाने लगा। यही वह मौका था, जहां से 21 ग्राम वाली कहानी निकली। हालांकि बाद के परिणाम बिल्कुल अलग रहे।
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अगले मरीज का वजन उसकी मौत के 15 मिनट बाद 14 ग्राम कम हुआ। तीसरे मामले में वजन दो चरणों में कम हुआ। पहले करीब 14 ग्राम और फिर 28.3 ग्राम। चौथा केस एक महिला का था। उसके साथ हुए प्रयोग को इसलिए खारिज कर दिया गया, क्योंकि तराजू ठीक से कैलिब्रेट नहीं था।
पांचवें मामले में वजन 10.6 ग्राम कम हुआ, लेकिन तराजू बाद में खराब हो गया। छठे मरीज की मौत तराजू ठीक करते समय ही हो गई।

कुत्तों में आत्मा नहीं होती!
मैकडुगल ने बाद में 15 कुत्तों पर भी प्रयोग किया। उनके वजन में कोई बदलाव नहीं हुआ, तो मैकडुगल को लगा कि ‘कुत्तों की आत्मा नहीं होती।’ वैसे, यह माना जाता है कि अपने प्रयोग के लिए मैकडुगल ने कुत्तों को जहर देकर मारा था।
साल 1907 में मैकडुगल ने अपनी रिपोर्ट ‘अमेरिकन मेडिसिन’ और ‘जर्नल ऑफ द अमेरिकन सोसायटी फॉर सायकोलॉजिकल रिसर्च’ में प्रकाशित की। उन्हें न्यूयॉर्क टाइम्स में भी स्थान मिला। लेकिन उनकी स्टडी में कई खामियां थीं।
- नमूने का आकार बहुत छोटा था। मैकडुगल ने भी माना कि अभी और प्रयोग किए जाने की जरूरत है।
- प्रयोग में इस्तेमाल किए गए उपकरणों की सटीकता पर सवाल उठाए गए।
- परिणाम एक जैसे नहीं आए और असंगत थे।
- अब हम जानते हैं कि मौत के बाद शरीर में होने वाले बदलावों के कारण वजन पर असर पड़ सकता है।
इन्हीं वजहों से मैकडुगल के प्रयोग को वैज्ञानिक समुदाय ने गंभीरता से नहीं लिया। लेकिन, आत्मा से जुड़े सवाल ने पीछा नहीं छोड़ा। कुछ और लोगों ने इस प्रयोग को दोहराने की कोशिश की। 2000 के दशक की शुरुआत में एक अमेरिकी किसान ने भेड़ों पर यह परीक्षण किया।
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भेड़ों का वजन केवल कुछ सेकेंड के लिए बढ़ा और फिर सामान्य हो गया। केमिकल इंजीनियर और फिजिशियन डॉ. गेर्री नाहूम (Dr. Gerry Nahum) ने सिद्धांत दिया कि आत्मा या चेतना किसी प्रकार की सूचना से जुड़ी हो सकती है, जो ऊर्जा के बराबर होती है और जिसका वजन मापा जा सकता है। हालांकि, इस पर अभी तक कोई ठोस शोध नहीं हुआ है।
आत्मा का बोझ
विज्ञान आत्मा का कोई भौतिक प्रमाण नहीं दे पाया है। फिर भी, आत्मा को लेकर जिज्ञासा और रोमांच बना हुआ है। वैज्ञानिकों ने इसे चेतना, ऊर्जा, या जानकारी के रूप में समझने की कोशिश की है। इसकी अवधारणा आज भी रहस्य बनी हुई है, जो धर्म, दर्शन और विज्ञान के बीच एक अनोखा सेतु बनाती है।
साल 2003 में इसी कॉन्सेप्ट पर एक फिल्म आई थी, 21 Grams। इसमें आत्मा के वजन का सवाल तो सीधे तौर पर नहीं उठाया गया, लेकिन यह दर्शाया गया कि इंसान की आत्मा पर भावनाओं, पापों और पश्चाताप का बोझ कैसा होता है। हमारे यहां भी कहा जाता है कि आत्मा पर बोझ पड़ जाए तो जल्दी हटता नहीं।
Mystery of Soul यानी आत्मा के रहस्य पर पड़ा पर्दा कब हटता है, इंतजार रहेगा।
https://www.britannica.com/topic/soul-religion-and-philosophy



