

भारत की कोई भी कारोबारी कहानी गौतम अडानी (Gautam Adani) के बिना पूरी नहीं हो सकती। और अब तो ऐसा हाल है कि राजनीतिक कहानी भी अडानी से आकर जुड़ जाती है। पिछले कुछ बरसों में हुए चुनाव ले लीजिए या फिर संसद के सत्र, अडानी का नाम आता जरूर है। इस शीतकालीन सत्र में तो विपक्षी सांसदों ने राहुल गांधी के सामने अडानी और नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) का मास्क लगाकर सियासी नाटक भी खेला।
इन बातों से अलग देखिए तो अडानी सफलता की ऐसी कहानी हैं, जो हर दिन एक नया अध्याय लिख रहे हैं। वह भारत के दूसरे सबसे अमीर शख्स हैं। कुछ वक्त तक टॉप पोजिशन भी उनके पास रही थी। रिलायंस और टाटा ग्रुप (Reliance, TATA group) के अलावा अडानी ग्रुप ही है, जिसका टोटल मार्केट कैप 200 अरब डॉलर का स्तर पार कर सका है।
जब भारत की टॉप 500 गैर सरकारी कंपनियों की वैल्यू केवल दो प्रतिशत की रफ्तार से बढ़ रही थी, तब अडानी ग्रुप की 9 कंपनियों की कुल वैल्यू लगभग 88 प्रतिशत बढ़ी है। अडानी का सफर लोगों को जितना हैरान करता है, उतनी ही हैरानी भरी उनसे जुड़ी ये दो कहानियां भी हैं।
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रास्ता रोका और उठा ले गए
डायमंड के बिजनेस में हाथ आजमाने के लिए गौतम अडानी 1978 में मुंबई चले गए थे। 1981 में उनके बड़े भाई ने अहमदाबाद में प्लास्टिक यूनिट लगाई और गौतम को कामकाज में सहयोग के लिए बुला लिया। यहां से उनके लिए ग्लोबल ट्रेडिंग का रास्ता खुला। 1988 में उन्होंने अडानी एक्सपोर्ट्स की नींव रखी। इसे ही आज Adani Enterprises के नाम से जानते हैं। आर्थिक उदारीकरण को उन्होंने मौके की तरह लिया। मुंद्रा पोर्ट (Mundra Port) को जब गुजरात सरकार ने आउटसोर्स किया, तो उसे लेना गौतम अडानी का सबसे बड़ा दांव था।
अडानी कारोबारी सफलता की सीढ़ियां चढ़ते जा रहे थे और तभी उनके साथ पहली दुर्घटना हुई। 1998 में गौतम अडानी (Gautam Adani) अपने एक करीबी शांतिलाल पटेल के साथ अहमदाबाद के कर्णावती क्लब से निकले। दोनों एक कार में थे। अभी वे कुछ दूर ही चले होंगे कि एक स्कूटर सवार उनके सामने आ गया।
कार रोकनी पड़ी और इसी बीच तेजी से एक वैन उनके पास आकर रुकी। उसमें से कुछ बंदूधारी उतरे और उन्होंने गौतम अडानी व उनके दोस्त का अपहरण कर लिया। खबरों के मुताबिक, किडनैपर्स ने तब करीब 15 करोड़ रुपये की फिरौती मांगी थी। हालांकि उसी दिन दोनों को छोड़ दिया गया।
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पुलिस ने इस मामले में जो चार्जशीट दाखिल की, उसमें मुख्य आरोपी थे फजलुर्रहमान और भोगीलाल दर्जी उर्फ मामा। फजलुर्रहमान को 2006 में भारत-नेपाल सीमा से गिरफ्तार किया गया। भोगीलाल की गिरफ्तारी दुबई में हुई और उसे 2012 में भारत लाया जा सका। केस में 6 दूसरे आरोपी भी थे।
फजलुर्रहमान और भोगीलाल की गिरफ्तारी से पहले ही बाकि के आरोपियों पर मुकदमा चल रहा था। 2005 में अदालत ने ठोस सबूत नहीं होने के चलते बाकियों को बरी कर दिया था। बाद में 2018 में फजलुर्रहमान और भोगीलाल भी बरी हो गए। दोनों के खिलाफ पर्याप्त सबूत नहीं थे।
फजलुर्रहमान तब अपराध की दुनिया का कुख्यात नाम था। बताया जाता है कि उसकी अदावत अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहिम (Dawood Ibrahim) से थी। एक समय फजलुर्रहमान ने गुजरात में अपहरण और फिरौती का लंबा जाल बिछा लिया था। अडानी अपहरण केस में वह जरूर बरी हो गया, लेकिन दूसरे मामलों के चलते जेल जाना पड़ा।
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जब सामने से निकल गए आतंकी
गौतम अडानी के जीवन में एक और बड़ी दुर्घटना घटी 2008 में, 26 नवंबर के दिन। 26/11, जिस दिन पाकिस्तान से आए आतंकवादियों ने मुंबई पर टेरर अटैक (Mumbai terror attack) किया था। अडानी उस रात ताज होटल के वेदरक्राफ्ट रेस्टोरेंट में दुबई पोर्ट के सीईओ मुहम्मद शरफ के साथ डिनर कर रहे थे। तभी आतंकवादी अंधाधुंध फायरिंग करते हुए होटल में घुसे। अडानी ने देखा कि आतंकवादी स्विमिंग पूल के रास्ते और लिफ्ट की ओर फायरिंग करते हुए ओल्ड विंग की ओर बढ़ रहे थे।
इसी दौरान होटल स्टाफ ने अडानी और दूसरे लोगों को बेसमेंट में पहुंचा दिया। कुछ घंटों के बाद उन सभी लोगों को ऊपर के फ्लोर पर ले जाया गया। अडानी ने बाद में बताया था कि वे लोग करीब 100 थे। कुछ लोग सोफे के नीचे छिप गए थे। अडानी एक सोफे पर बैठे हुए थे और बाकी लोगों से बात करने की कोशिश कर रहे थे ताकि सभी में हौसला बना रहे। वो लोग पूरी रात वहीं रहे।
अगले दिन सुरक्षाबल उन तक पहुंचे और सभी को पीछे के रास्ते से बाहर निकाला। उस दिन के बारे में अडानी का कहना था कि ‘मौत मेरे सामने बस 15 फुट की दूरी पर थी।’